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________________ श्रीउपदेशपदे नम्. है फलमत्थु ॥ ३३ ॥ उदरप्पएसभक्खणसमए मरिउ स णलिणिगुम्मम्मि । देवत्तणमणुपत्तो तत्थ विभूई पभूई च ॥ ३४॥ 8 श्रीअव2. दुकरविणिग्गहाओ णलिणीगुम्माभिलासलेसाओ । भूरिकयमोक्खकंखापक्खोवि तहिं स संजाओ ॥ ३५ ॥ जइ पुण तदे-न्तिसुकुमा गचित्तो सो होज मओ कहं महरिसित्ति । पढिओ घडेज सत्यंतरेसु वुत्तं जओ एवं ॥ ३६॥ दुक्करमुद्धोसकरं अवंति- लनिदर्श★ सुकुमालमहरिसीचरियं । अप्पावि नाम तह तज्जइत्ति अच्छेरयं एयं ॥३७॥ अञ्चतुवगारकर सरीरमेयंति मन्नमाणो 2 सो। परिवज्जियसुरकज्जो सज्जो चिय एत्थमागम्म ॥ ३८॥ गंधोदगवुट्ठिसुगंधिपुप्फपगरणाइणा तमच्चेइ । पच्चक्खीकयट्र रूवो अजसुहत्थिं नमंसित्ता ॥ ३९॥ जहआगयं पडिगओ उदिए सूरम्मि जा न जणणीए । पायपणामनिमित्तं समागओ ताव संभालो ॥ ४०॥ जाओ तस्स न कत्थवि जाव पउत्ती कहिंचि उवलद्धा । वजाहउब सेलो बंधुजणो 8 वाउलीहूओ॥४१॥ तो अजसुहत्थिमुणीसरेण भद्दा सपरियणा भणिया । जहरयणीऍ अवंतीसुकुमालो लद्धपवज्जो ॥४२॥ विहियाणसणो कंधारतरुवणे मुक्ककायपडिबंधो। णलिणीगुम्मविमाणे सुरो पहाणो समुप्पन्नो॥४३॥ भद्दा वहूसमेया तत्थ गया विहियमयगकायवा । तहाणाओ नियत्ता पन्नत्ता सूरिणा एवं ॥४४॥ नइपूरे पडियाणं दारूण समागमो जहा होइ । तत्तो जहा विओगो तह जीवाणपि संसारे ॥४५॥ जह सुमिणो जह माइणिहयाउ जह इंदजालकीलाउ । जह बालधूलिहरविलसियाई तह एस जियलोओ॥४६॥ एत्थ विहवी अविहवी असुहीवि सुही गुणीवि किल अगुणी । बंधूवि सिय अबंधू धी अणवत्थो भवत्थजणो॥४७॥ तहा जस्समयस्सेगयरो सग्गो मोक्खो च होज 8॥१६६॥ 2 नियमेण । मरणंपि तस्स मन्ने ऊसवभूयं मणुस्सस्स ॥४८॥ एवमवणीयसोगा भद्दा वहुया उदग्गवेरग्गा। सवाओ
SR No.010796
Book TitleUpdeshpad Mahagranth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapvijay
PublisherMuktikamal Jain Mohan Mala
Publication Year1979
Total Pages1008
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size45 MB
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