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________________ श्रीउपदेशपदे ॥१२७॥ रितश्च होज परिभवा विक्किया विहिया ॥ ३३५॥ पुरियापुरीए तित्थुब्भावणा मच्चभुयं कयं जं च । एत्तो चिय परतित्थिय- श्रीवज्रमानमिलाणी य संजाया ॥ ३३६ ॥ तथा तोसलिपुत्तायरियसयासे जह रक्खिओ दसपुरम्मि । पवइओ सिरिमाले पुरम्मि स्वामिचजइवइरमणुपत्तो ॥ ३३७ ॥ पढिया जह नव पुवा भिन्नो वासयठिएण तेण जओ । एवं कहा कहिज्जइ सत्थेसु पुराण- रितम् पुरिसेहिं ॥ ३३८॥ तं किंपि अनन्नसमं सोहागं आसि वइरसामिस्स । मरइ मरतेण समं जो वुत्थो एगराइंपि ॥३३९॥ श्रीगौतमदसमे पुबम्मि जहा जविएसु य भग्गगहणमसमत्थो। पुच्छिज्जंतो केवईयमत्थि अग्गे भणइ वइरो ॥ ३४०॥ बिंदुस- स्वामिचमाणमहीयं समुदसरिसं समत्थि अणहिगयं । भुज्जो भुज्जो पुच्छंतु एस पहिओ गुरुसयासे ॥ ३४१॥ एमाइअजरक्खियचरियं आवस्सयाणुसारेण । णेयं तयस्थिणा एत्थ अणुवओगित्ति नो कहियं ॥ ३४२॥ ___ भवियाण कयाणंदं सिरिगोयमसामिणो भणिस्सामि । चरियं पसंगयत्तं किंची तंभे निसामेह ॥१॥ सेलाओ उत्त-18 रंतो भयवं सिरिगोयमो पभायम्मि । तडितरुणरविकरनिभो पलोइओ वियसियमुहेहिं ॥२॥ कमलेहिं व बालरवी पुचो"इयतावसेहिं भणियं च । तुब्भे अम्हं गुरवो तह नयसीसा वयं सीसा ॥३॥ तुन्भं अम्ह य जगजीवबंधवो भवकमल वणभाणू । सुगिहीय नामधेओ स भणइ भयवं गुरू वीरो॥४॥ किं तुब्भाणवि अन्नो को वि गुरू अत्थि, तग्गुणग्ग-18 हणं । कुणइ गुरूण पबंधेण सुप्पसन्नाणणो संतो॥५॥ यथा-सिद्धत्थरायतणओ विणओणयसीससुरपहुसरणो। ॥१२७॥ है धण्णो धम्मियजणसीससेहरो हारसरिसजसो ॥६॥ दुत्तरभवसायरपारगमणणिवणमहापवहणं व । सयलसमीहिमकल्ला १ ख. धम्मो। OSTOSKORSTENSILISHAHAR
SR No.010796
Book TitleUpdeshpad Mahagranth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapvijay
PublisherMuktikamal Jain Mohan Mala
Publication Year1979
Total Pages1008
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size45 MB
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