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________________ श्रीउपदे शपदे ॥११३॥ FACILISISSIPSIKOG चाणकमंतिणा फालिऊण फुडमुयरं । पंचत्तं उवणीया ता ते एत्तो वि को वेरी? ॥१४०॥ एवं सोचा कुविएण चाणाक्यराइणा पुच्छिया नियगधावी । तीएवि तहा कहियं मूलाओ न कारणं सिद्ध ॥ १४१॥ पत्थाचे चाणको समागओ भूवईवि तं दई। भालयलरइयभिउडी झडत्ति विपरम्मुहो जाओ ॥१४२ ॥ अहह कह गयजीवोत्ति परिभवं मह करेइ एस निवो? । परिभाविऊण एवं चाणको नियगिहम्मि गओ ॥ १४३ ॥ दाऊण गेहसारं पुत्तपपुत्ताइसयणवग्गस्स । निउणमईए विभावइ महपयसंपत्तिवंछाए ॥१४४ ॥ केण वि पिसुणेण इमो मन्ने रायावि कोविओ एवं । ता तह करेमि ६ जह सो दुक्खाभिहओ चिरं जियइ ॥ १४५ ॥ तो पवरगंधबंधुरजुत्तिपओगेण साहिया वासा । खित्ता समुग्गयम्मी लिहियं भुजम्मि तह एयं ॥ १४६ ॥ जो एए वर वासे जंघित्ता इंदियाण अणुकुले । विसए निसेवइस्सइ सो वच्चिरस्सइ जमघरम्मि ॥ १४७ ।। वरवत्थाभरणविलेवणाई तूलीउ दिवमल्लाई। पहाणं सिंगारंपि हु जो काही सोवि लहुल 8 मरिही ॥ १४८॥ इयवाससरूवपरूवणापरं भुजयं पिवासंतो। पक्खिविऊण समुग्गो ठविउं मंजूसमज्झम्मि ॥ १४९॥ सावि हु पवरोवरए जडिउं पउराहिं कीलियाहिं दढं । पंसुक्का तालित्ता तस्स कवाडाई निविडाई ॥ १५०॥ खामित्ता सयणजणं जिणिदधम्मे निजोजिऊणं च । रणो गोउलठाणे इंगिणिमरणं पवन्नो सो ॥१५१॥ जाणिय परमत्थाए धाईए अह नराहिवो वुत्तो । पिउणो वि हु अब्भहिओ चाणको कीस परिभूओ ॥ १५२ ॥ रन्ना भणियं जणणीवि-5 णासगो एस तीए तो भणियं । जइ तं न विणासिंतो एसो ता तुमवि नो होतो ॥ १५३ ॥ जम्हा तुह पिउविसभावि- ॥११३॥ यन्नकवलं गहाय भुंजंती। पइ गभठिए देवी विसविहुरा मरण मणुपत्ता ॥ १५४॥ तम्मरणं च पलोइय चाणक्केणं स परिभू २५३ ॥ जन्माच पलोइर
SR No.010796
Book TitleUpdeshpad Mahagranth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapvijay
PublisherMuktikamal Jain Mohan Mala
Publication Year1979
Total Pages1008
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size45 MB
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