SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 240
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शपदे ॥११२॥ पालेइ रजमोमं अहन्नया दारुणं जायं ॥१०८॥ वुड्डा वासेण ठिया गुरुणो संभूयविजयनामाणो । तत्थ पुरे नियसीसा चाणाक्यविसज्जिया जलहितीरेसु ॥ १०९॥ अहिणवठवियमुणीसरकहिजमाणेसु मंततंतेसु । खुड्डगदुगस्स सन्निहियभावओ उव द्वारम् गयं सर्व ॥ ११०॥ गंतूण पंथभागं विरहुकंठं गुरुण तं बलियं । सेसो साहुसमूहो पत्तो निद्दिठाणेसु ॥१११॥ सय-& मेव गुरू हिंडइ भिक्खडा सावगाइ गेहेसु । फासुयमहेसणिजं जं भिक्खं परिमियं लहइ ॥११२॥ दाउं पढमं तेसिं अप्पणा जमवसेसयं तस्स । तं भुंजइ भोयणहीण भावओ वुड्डभावाओ ॥ ११३ ॥ जाओ अइतणुयतणू तं दर्दु खुडगा ६ विचिंतति । न कयं सुंदरमम्हेहिमागया जमिह अस्स कओ ॥ ११४ ॥ उवरोहो बाढमओ अन्नं भोयणपहं गवेसेमो । अंतद्धाणकरं जं तमंजणं जोइयं तेहिं ॥११५॥ गुरुणो अपरिकहिता भोयणसमयम्मि चंदगुत्तस्स । विहियंजणा पविट्ठा नय दिवा केणइ जणेण ॥ ११६ ॥ लग्गा सहेव भोत्तुं रन्ना पजत्तिमागया जाव । एवं पइदिवसं चिय तेसु भुंजतएसु निवो ॥ ११७ ॥ अछिन्नछुहो तुच्छीभूओ देहेण पुच्छिओ भणइ । अज न नजइ कजं केणइ निज्जइ ममाहारो ॥ ११८ ॥ थेवो चिय मे भोगं समेइ जाया मणम्मि वीमंसा। चाणक्कस्स न एसो अईव जं सुंदरो कालो ॥११९॥ ता कोवि अंतरहिओ थाले एयस्स भुंजए तूणं । तो इट्टगाणचुन्नो भोयणसालंगणे खित्तो ॥१२०॥ बीयदियहम्मि ६ तेणं पविसंताणं निभालिया य पया । दिवा पयपंतीओ दोन्नि न जेसिं च ताओ ते ॥ १२१ ॥ दारनिरोह काउं धूमोर संमोहकारओ विहिओ। जायाई अंसुसलिलाई ताई लोयस्स नयणाई ॥१२२ ॥ तक्खणमोत्तिन्नंजणजोगा ते दोवि ॥११२॥ खुडगा दिट्ठा। चाणक्केण सलज्जो जाओ वसहीए पेसविया ॥ १२३ ॥ अहमेएहिं विद्यालिओत्ति राया जुगंछिउ लग्गो।
SR No.010796
Book TitleUpdeshpad Mahagranth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapvijay
PublisherMuktikamal Jain Mohan Mala
Publication Year1979
Total Pages1008
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size45 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy