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________________ श्रीउपदे शपद ॥७५॥ उत्तारेइ तओ भणिओ णेण जह सच्चसंधो सि । पुत्त! तओ तेणं अजसभीरुणा कहवि पडिवन्ना ॥७५॥ दाऊण ओ-5 अथशा० ६ सहाई नीरोगसरीरगा कया णेण । निसुयं रन्ना पंडियसिरोमणी कप्पगो एत्थ ॥ ७६ ॥ सदाविय तो भणिओ रन्ना, जहद्वा० कल्प रज्जचिंतगो होहि । तं कप्पय असरिससेमुहीइ उवहसियगुरुबुद्धी ॥७७ ॥ तह सव्वं चिय रजं तुज्झ वसे जेण भद! 5 कमंत्रिक मम्हाणं । गासच्छायणमेत्तं मोत्तुं नहु कज्जमन्नेण ॥ ७८॥ कह किविसमेयमहं पडिवजेजा भणेइ सो ताहे। एसोन निर६ वराहो चिंतेइ निवो वसे होही ॥७९॥ भणिओ रन्ना साहीइ तीइ जो धोयगो परिव्वसइ । किं कप्पगवत्थाई तं धोवसि अहव अन्नोति ॥ ८॥ अहमेव तेण भणिए एत्ताहे जइ समप्पई वत्थे । ता सव्वहावि मा देज एवमेसो पडिनिसिद्धो 5॥ ८१॥ अह इंदमहे पत्ते भज्जाए कप्पगो इमं भणिओ । मम पिययम! वत्थाई चंगाइं तुम रयावेह ॥ ८२ ॥ अइसंतुट्ट६ मणो सो निच्छइ ता जा पुणो पुणो भणइ । नीयाणि ताणि रयगस्स मंदिरे ताणि वत्थाणि ॥ ८३॥ सो भणइ अहं मोल्लं विणावि रंगेमि ते इमाणि त्ति । सो मग्गिओ छणदिणे अजहिजो समप्पेमि ॥८४॥ इयभणिरो सो कालं गमेइ जा वीयमागयं वरिसं । एवं तइयंपि तओ गाढं सो मग्गिडं लग्गो॥ ८५॥ तहवि न अप्पेइ जया ताहे सो रोसरत्तसव्वंगों। तं भणइ तुज्झ रुहिरेण जइ न रंगेमि वत्थाई ॥८६॥ तो जलियभीमजाउलम्मि पविसामि निच्छयं जलणे। तो पत्तो नियगेहे गहिया असिपुत्तगा निसिया ॥ ८७ ॥ रयगगिहम्मि अइगओ ताहे रयगेण भारिया भणिया । आणेहि देहि वत्थाणि जावे सा तं तहा कुणइ ॥८॥कप्पेण तस्स उदरं फालित्ता ताणि रुहिररत्ताणि। विहियाणि तस्स भजाइ कप्पगो ॥७५॥ भणिउमाढत्तो॥८९॥ किं एस निरवराहो हो तए जेण वारिओ रन्ना। तेणेसो चिरकालो जाओ वत्थाणमप्पिणणे ॥९॥ ॐा
SR No.010796
Book TitleUpdeshpad Mahagranth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapvijay
PublisherMuktikamal Jain Mohan Mala
Publication Year1979
Total Pages1008
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size45 MB
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