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________________ 'पुत्र'द्वा० श्रीउपदे- अम्हे तुम्हं सरंतीण ॥ २३ ॥ ता जह अज विवाओ एसो परिच्छिज्जई तहा कुणसु । पुत्तं धणं च दाऊण भासियं तो शपदे अमच्चेण ॥ २४ ॥ अवो! एस अउव्वो कह छिजिस्सइ सुहं विवाउत्ति । इय भणिरम्मि अमच्चे भणियमहामच्चपुत्तेण ॥२५॥ जइ तुम्हाणमणुन्ना विवायमेयं अहं खु छिंदामि । अणुमन्निएण तेणं भणिया महिलाउ ता दोवि ॥२६॥ ॥६६॥ एत्थमुवट्ठवह धणं पुत्तं च, तओ तहा कए ताहिं । उवणीयं करवत्तं धणस्स भागा य दोवि कया ॥ २७॥ पुत्तस्स ६ नाभिदेसे करवत्तं जा दुभागकरणाय । आरोवियं, न अन्नह छिज्जइ एसो विवाउत्ति ॥२८॥ ता सुयजणणी निकित्तिहै मेण नेहेण लंघिया भणइ ॥ दिजउ पुत्तो वित्तं विमाए मा होउ सुयमरणं ॥ २९ ॥ नायममच्चसुएणं जह एस सुओ इB माइ, न इमीए । निग्धाडिया तओ सा पुत्तो य धणं च इयराए ॥ ३०॥ एत्तो नीओ नियमंदिरम्मि तो तीइ सो अम च्चसुओ। दीणाराण सहस्सं कयन्नुयत्तेण से दिन्नं ॥ ३१॥ पत्ते चउत्थदिवसे रायसुओ निग्गओ नयरमज्झे । भणियं *च संति जइ मज्झ रजसंपत्तिपुण्णाइं ॥ ३२ ॥ तो उग्घडंतु बाढं अह तप्पुण्णोदएण तत्थ खणे । तप्पुरराया अनिमित्त मेव जाओ मरणसरणो ॥ ३३ ॥ अप्पुत्तो य, पउत्ता गवेसणा रजजोगपुरिसस्स । नेमित्तिओवइट्ठो ठविओ सो तस्स रजम्मि ॥ ३४॥ चत्तारिवि तो मिलिया पभणंति परोप्परं पहिट्टमणा सामत्थमेत्त कित्तियमम्हाणं तो भणंतेवं ॥ ३५॥ दक्खत्तणयं पुरिसस्स पंचगं, सइयमाहु सुंदेरं । बुद्धी सहस्समुल्ला सयसाहस्साई पुण्णाई ॥ ३६ ॥ सत्थाहसुओ दक्खतणेण सेट्ठीसुओ य रूवेण । बुद्धीइ अमच्चसुओ जीवइ पुण्णेहिं रायसुओ ॥ ३७॥ एत्थ य पत्थुयमेयं अमच्चपुत्तस्स तस्स किल बुद्धी । उप्पत्तियत्ति नेया सेसं तु पसंगओ भणियं ॥ ३८॥ इति ॥ अथ गाथाक्षरार्थ:-पुत्त इति द्वारपरा-
SR No.010796
Book TitleUpdeshpad Mahagranth Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapvijay
PublisherMuktikamal Jain Mohan Mala
Publication Year1979
Total Pages1008
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size45 MB
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