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________________ दूसरा अध्ययन -(०)लोकविजय aaree __ जो कामभोग है वे ही संसार के मूलस्थान है और जो संसार के मूलस्थान है वे ही कामभोग हैं। कारण यह कि कामभोगो में थासक्त मनुष्य प्रमाद से माता-पिता, भाई-बहिन, स्त्री-पुत्र, पुत्रवधुपुत्री, मित्र परिचित और दूसरी भोग सामग्री तथा अन्नवस्त्र आदि की ममता मे लीन रहता है। वह सब विषयों की प्राप्ति का इच्छुक और उसी में चित्त रखने वाला रात दिन परिताप उठाता हुश्रा, समय-कुसमय का विचार किये बिना कठिन परिश्रम उठाता हुया बिना विचारे अनेक प्रकार के कुकर्म करता है, और अनेक जीवों का वध, छेद, भेद तथा चोरी, लूट, त्रास अादि पाप कर्म करने के लिये तैयार होता है। इससे भी श्रागे वह किसीने न किया हुआ कर्म भी करने का विचार रखता है। [ ६२,६६] __ स्त्री और धन के कामी किन्तु दु खो से डरने वाले वे मनुष्य अपने सुख के लिये शरीरबल, ज्ञातिबल, मित्रवल, प्रेत्यबल (दानव श्रादि का), देवबल, राजवल, चोरबल, अतिथिबल और श्रमणबल (इनसे प्राप्त मत्रतंत्र का अथवा सेवादि से संचित पुण्यका) को प्राप्त करने के लिये चाहे जो काम करते रहते है और ऐसा करते हुए जो हिसा होती है उसका जरा भी ध्यान नहीं रखते । [१] कामिनी और कांचन मे मूढ़ उन मनुष्यो को अपने जीवन से अत्यन्त मोह होता है। मणि, कुंडल और हिरण्य (मोना)
SR No.010795
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGopaldas Jivabhai Patel
Publication Year
Total Pages151
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size5 MB
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