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________________ याचारांग सूत्र 'मैंने ऐसा किया', 'मैं ऐसा कराऊंगा,' या 'मैं ऐसा करने की की अनुमति दूंगा'- इस प्रकार सारे संसार में विविध प्रवृत्तियां हो रही है। किन्तु ऐसी प्रवृत्तियो से कैसा कर्मबन्ध होता है, इसको थोडे लोग ही जानते हैं ! इसी कारण वे अनेक लोक और योनियो में जन्म लेते रहते है, विविध वेदनाएं सहन करते रहते है और इस प्रकार असह्य दुखो को भोगते हुए संसार में भटकते रहते हैं। [६-६] भगवान् महावीर ने इस सम्बन्ध मे ऐसा समझाया है कि लोग शब्दादि विषयो और रागद्वेपादि कपायो से पीडित है, इस कारण उनको अपने हिताहित का भान नहीं रहता, उन्हें कुछ समझा सकना भी कठिन है। वे इसी जीवन में मानसम्मान प्राप्त करने और जन्ममरण से छूटने के लिये या दुःखो को रोकने के लिये अनेक प्रवृत्तिया करते रहते हैं। अपनी प्रवृत्तियो से वे दूसरो की हिंसा करते रहते है उन्हें परिताप देते रहते है। यही कारण है कि उन्हें सच्चा ज्ञान नही हो पाता। भगवान् के इस उपदेश को बरावर सम्झने वाले और सन्य के लिये प्रयत्नशील मनुष्यो ने भगवान् के पास से अथवा उनके साधुओ के पास से जान लिया होता है कि अनेक जीवो की घात करना ही बन्धन है, मोह है मृत्यु है और नरक है । जो मुनि इसको जानता है, वही सच्चा कर्मज्ञ है क्योकि जानने के योग्य यही वस्तु है । हे संयमोन्मुख पुरुषो । तुम बारीकी से विचार कर देखो। [१०-१६] मनुष्य दूसरे जीवो के प्रति असावधान न रहे । दूसरो के प्रति जो श्रमावधान रहता है, वह अपनी आत्मा के प्रति असावधान रहता है
SR No.010795
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGopaldas Jivabhai Patel
Publication Year
Total Pages151
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size5 MB
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