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________________ विवाह-क्षेत्र-प्रकाश * कौशिकायात्र तैस्तस्यां याचितायां नृपोऽवदत् । कन्या सोढा कुमारेण यातेत्युक्तास्तु ते ययुः ॥ ३१ ॥ -२९ वॉ सर्ग। ये दोनो पद्य उस यज्ञप्रकरणके हैं जिसमे राजा अमोघदर्शनने रगसेना वेश्याकी पुत्री 'कामपताका' वेश्याका नृत्य कराया था और जिसे देखकर कौशिक ऋषि भी क्षुभित हो गये थे। इन पद्योमे बतलाया है कि 'यज्ञकर्मके समाप्त होनेपर उस ( कामपताका ) कन्याको राजपुत्र ( चारुचन्द्र ) ने स्वीकार कर लिया । ( इसके बाद ) कुछ तापस लोग कन्याके लिये भक्त राजाके पास आये और उन्होने 'कौशिक' के लिए उसकी याचना की। इसपर 'राजाके इस उत्तरको पाकर कि 'वह कन्या तो राजपुत्रने विवाह ली है' वे लोग चले गये। ___ इस उल्लेखपरसे स्पष्ट है कि श्रीजिनसेनाचार्यने पहले पद्यमे जिस बातके लिए 'स्वीकृता' पद्यका प्रयोग किया था, उसो बातको अगले पद्यमे 'ऊढा' पदसे जाहिर किया है, जिससे 'स्वीकृता' ( स्वीकार करली ) और 'ऊढा' (विवाह ली) दोनो पद एक ही अर्थके वाचक सिद्ध होते हैं। प० दौलतरामजीने 'स्वीकृता' का अर्थ 'अङ्गीकार करी' और 'ऊढा' का अर्थ 'वरी' दिया है। और समालोचकजीके श्रद्धास्पद प० गजाधरलालजीने, उक्त पद्योका ( विवाहित ) अर्थमें प्रयुक्त किया है । यथा :-- तत. कदाचित्सा कन्या स्वीकृता राजसूनुना। तापसास्तेपि कन्यार्थं नृपपावं समागता ॥ ३० ॥ प्रार्थिताया नृपोऽवाढीत्तस्या सोढा विधानतः । कुमारेण ततो यूय यात स्वस्थानमुत्सुका. ॥ ३१ ॥ -१० वॉ सर्ग।
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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