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________________ विवाह-क्षेत्र-प्रकाश है। और अनुमान जो आपने वाँधा है वह समुचित नही है । क्योकि एक वेश्या व्यसनीके रूपमे चारुदत्तका जो कथानक प्रसिद्ध है वह एक रोगीमे व्यक्त होनेवाले रोगके परिणामोको प्रदर्शित करनेकी तरह, चारुदत्तके उस दोषका फल प्रदर्शन अथवा उससे होनेवाली मुसीवतोका उल्लेखमात्र है और उसे ज्यादा-से-ज्यादा उसके उस दोपकी निन्दा कह सकते हैं। परन्तु उससे चारुदत्तके व्यक्तित्व' (शखसियत Personality ) के प्रति घृणा या तिरस्कारका कोई भाव नही पाया जाता, जिसका निषेध करना उदाहरणमे अभीष्ट था और न किसीके एक दोपकी निन्दासे उसके व्यक्तित्वके प्रति घृणा या तिरस्कारका होना लाजिमी आता है। दोपकी निन्दा और बात है और व्यक्तित्वके प्रति घृणा या तिरस्कारका होना दूसरी बात । श्रीजिनसेनाचार्यविरचित हरिवशपुराणादि किसी भी प्राचीन ग्रन्थमे ऐसा कोई उल्लेख नही मिलता जिससे यह पाया जाता हो कि चारुदत्तके व्यक्तित्वके साथ उस वक्त जनताका व्यवहार तिरस्कारमय था। प्रत्युत इसके, यह मालूम होता है कि चारुदत्तका काका स्वय वेश्या-व्यसनी था, चारुदत्तकी माता सुभद्राने, चारुदत्तको स्त्रीसभोगसे विरक्त देखकर, इसी काकाके-द्वारा वेश्याव्यसनमे लगाया था', वेश्याके घरसे निकाले जानेपर जब चारुदत्त अपने घर आया तो उसकी स्त्रीने व्यापारके लिये उसे अपने गहने दिये और वह मामाके साथ विदेश गया, विदेशोमे चारुदत्त अनेक देवो तथा विद्याधरोसे पूजित, प्रशसित और सम्मानित हुआ, उसे प्रामाणिक १. ब्रह्मनेमिदत्तने भी आराधनाकथाकोशमें लिखा है : तदा स्वपुत्रस्य मोहेन संगतिं गणिकादिमि । सुभद्रा कारयामास तस्योच्चैलम्पटैजनै. ॥
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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