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________________ समयसारका अध्ययन और प्रवचन : : आजकल जैन समाजमे समयसारका प्रचार बढ़ रहा हैजिसे देखो वही समयसारकी स्वाध्याय करना तथा उसके प्रवचनोको सुनना चाहता है । वाह्य दृष्टिसे बात अच्छी हैबुरी नही; परन्तु देखना यह है कि समयसारका अध्ययन कितनी गहराई के साथ हो रहा है ओर उसके प्रवचनोमें क्या कुछ विशेषता रहती है । भावुकता में वह जाना तथा दूसरोको वहा देना और बात है और किसी विषय के ठीक मर्मको समझना - समझाना दूसरी बात है । कितने ही विद्वान तो थोडा-सा अध्ययन करते ही अपनेको प्रवचनका अधिकारी समझने लगते हैं और लच्छेदार भाषणोको झाड़कर लोकका अनुरजन करने मे प्रवृत्त हो जाते हैं, जिनसे बहुतो की गति "वागुच्चारोत्सवं मात्र तत्क्रिया कर्तुमक्षमाः " जैसी होती है । इतना ही नहीं, बल्कि वे इस ग्रन्थपर टीका-टिप्पण तक लिखकर उसे प्रकाशित करते-कराते हुए भी देखने मे आते हैं । उन्हें इस बातकी कोई चिन्ता नही कि वे वैसा करनेके अधिकारी भी हैं या कि नही तथा अपनी उस टीकामे कोई उल्लेखनीय खास विशेषता ला सके हैं या कि नही और उनके खुदके ऊपर समयसारका कितना असर है । हालमे ऐसी दो एक टीकाओको देखनेका मुझे अवसर मिला है, परन्तु उनमे कुछ वाक्योको इधर-उधरसे ज्यो-का-त्यो उठाकर या कुछ तोड़-मरोडकर रख देने और पिष्टपेषण तथा यो ही बढा-चढाकर कहने के सिवा कोई खास बात प्रायः देखने को नही मिली । मूल गाथाओके पद-वाक्योकी गहराईमे स्थित अर्थको स्पष्ट करने अथवा उनके गुप्त रहस्यको विवेचन द्वारा प्रकट करनेकी उनमे कोई खास चेष्टा नही पाई गई। ऐसी नगण्य
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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