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________________ ८३६ युगवीर-निवन्धावली एक अमर कार्य होगा। मैं अपनी शक्तिके अनुसार हर तरहसे इस कार्यमे आपका हाथ बटानेके लिये तैयार हूँ। वृद्ध हो । जानेपर भी आप मुझमे इसके लिये कम उत्साह नहीं पाएंगे। जनजीवन और जैनसमाजके उत्थानके लिये मैं इसे उपयोगी समझता हूँ। • लाला जुगलकिशोरजी ( कागजी ) आदि कुछ सज्जनोसे जो इस विषयमे बातचीत हुई तो वे भी इस विचारको पसन्द करते हैं और राजगृहको ही इसके लिये सर्वोत्तम स्थान समझते है। इस सुन्दर स्थानको छोडकर हमे दूसरे स्थानकी तलाशमें इधर-उधर भटकनेकी जरूरत नही। यह अच्छा मध्यस्थान है-पटना, आरा आदि कितनेही बडे-बडे नगर भी इसके आसपास हैं और पावापुर आदि कई तीर्थक्षेत्र भी निकटमे हैं । अत. इस विषयमे विशेष विचार करके अपना मत स्थिर कीजिये और फिर लिखिये । यदि राजगृहके लिये आपका मत स्थिर हो जाय तो पहले साहू शान्तिप्रसादजीको प्रेरणा करके उन्हे वह जमीदारी खरीदवाइये, जिसे वे खरीदकर तीर्थक्षेत्रको देना चाहते है, तब वह जमीदारी कालोनीके काममे आ सकेगी।' १ अनेकान्त वर्ष ९, किरण १, जनवरी १९४८
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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