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________________ ८३२ युगवीर - निवन्धावली माईका लाल ऐसा निकल आवे जो एक उत्तम जैनकालोनी की योजना एवं व्यवस्थाके लिये अपना सब कुछ अर्पण कर देवे, और इस तरह वीरशासनकी जड़ोको युगयुगान्तर के लिये स्थिर करता हुआ अपना एक अमर स्मारक कायम कर जाय । इसो सदुद्देश्यको लेकर आज उक्त पत्र नीचे प्रकाशित किया जाता है । यह पत्र एक बडे पत्रका मध्यमांश है, जो मोनके दिन लिखा गया था, उस समय जो विचार धारा- प्रवाहरूपसे आते गये उन्हीको इस पत्रमे अङ्कित किया गया है और उन्हे अङ्कित करते समय ऐसा मालूम होता था मानों कोई दिव्यशक्ति मुझसे वह सब कुछ लिखा रही है । मैं समझता हूँ इसमें जनधर्म, समाज और लोकका भारी हित सन्निहित है । जैनकालोनी-विषयक पत्र " जैनकालोनी आदि सम्बन्धी जो विचार आपने प्रस्तुत किये हैं ओर बाबू अजितप्रसादजी भी जिनके लिये प्रेरणा कर रहे हैं वे सब ठीक हैं । जैनियोमे सेवाभावकी स्पिरिटको प्रोत्त ेजन देने और एकवर्ग सच्चे जैनियो अथवा वीरके सच्चे अनुयायियोको तैयार करनेके लिए ऐसा होना ही चाहिए । परन्तु ये काम साधारण बातें बनानेसे नही हो सकते, इनके लिये अपनेको होम देना होगा, दृढसङ्कल्पके साथ कदम उठाना होगा, 'कार्य साधयिष्यामि शरीरं पातयिष्यामि वा' की नीतिको अपनाना होगा, किसी के कहने-सुनने अथवा मानापमानकी कोई पर्वाह नही करनी होगी और अपना दुख-सुख आदि सब कुछ भूल जाना होगा । एकही ध्येय ओर एकही लक्ष्यको लेकर वरावर आगे बढना होगा। तभी रुढियोका गढ़ टूटेगा, धर्मके आसनपर जो रूढियों आसीन है उन्हें आनन छोड़ना पड़ेगा और Metabo
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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