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________________ अस्पृश्यता निवारक आन्दोलन ८०५ इतना ही समझना चाहिये । इससे अधिक उसका यह आशय लेना ठीक नही होगा कि वह सर्वदेशो और सर्वसमयोके लिये, उस देश और उस समयके लिये भी जहाँ और जब वह परिस्थिति कायम न रहे, एक अटल सिद्धान्त है । और इसलिये एक लौकिक धर्म सम्बन्धी वर्तमान आन्दोलनके विरोधमे ऐसे ग्रन्थोके अवतरण पेश करने का कोई नतीजा नहीं हो सकता। शास्त्रोमे ऐसी कितनी ही जातियोका उल्लेख है जो उस समय अस्पृश्य ( अछूत) समझी जाती थी, परन्तु आज वे अस्पृश्य नही . है। आज हम उन जातियोके व्यक्तियोको खुशीसे छूते हैं, पास बैठाते हैं और उनसे अपने तरह तरहके गृह-कार्य कराते हैं। उदाहरणके लिये धोवरोको लीजिये, जो हमारे इधर उच्चसे उच्च जातियोके यहाँ पानी भरते हैं, बर्तन मॉजते हैं और अनेक प्रकारके खाने आदि बनाते हैं। ये लोग पहले अस्पृश्य समझे जाते थे और उस समय उनसे छू जानेका प्रायश्चित्त भी होता था। परन्तु आज कितने ही प्रदेशोमे वह दशा नही है, न वे अस्पृश्य समझे जाते हैं और न उनसे छू जानेका कोई प्रायश्चित्त किया जाता है। यह सब क्या है ? क्या यह इस वातको सूचित नहीं करता कि बादमे लोगोने देश-कालकी आवश्यकताओके अनुसार अपनी इस प्रवृत्तिको बदल दिया है?* इसी तरह वर्तमान अछूत जातियो या उनमेसे किसी जातिके साथ यदि आज भी अस्पृश्यताका व्यवहार उठा दिया जाय तो उससे एक लोक-रूढिका-लोक व्यवहारका परिवर्तन हो जाने___स्पृश्याऽस्पृश्यके सम्बन्धमे कितने ही उल्लेख शास्त्रोंमें ऐसे भी पाये जाते हैं, जिनमें आचार्यों में परस्पर मत-भेद हैं और जो देश-काल की भिन्न भिन्न स्थितियोंके परिवर्तनादिकको ही सूचित करते हैं ।
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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