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________________ क्या सभी कंदमूल अनतकाय होते हैं १ ७९९ सा अनतकाय नही है, साथ ही यह भी कि, किस-किस अवस्थामें वे अनतकाय होते हैं और किस-किसमे अनतकाय नही रहते । अनेक वनस्पतियाँ भिन्न-भिन्न देशोकी अपेक्षा जुदा-जुदा रग, रूप, आकार, प्रकार और गुण-स्वभावको लिये हुए होती हैं। बहुतोमे वैज्ञानिक रीतिसे अनेक प्रकारके परिवर्तन कर दिये जाते है। नाम-साम्यकी वजहसे उन सबको एक ही लाठीसे नही हाँका जा सकता। सभव है कि एक देशमे जो वनस्पति अनतकाय हो दूसरे देशमे वह अनंतकाय न हो, अथवा उसका एक भेद अनतकाय हो और दूसरा अनतकाय न हो। इन सब बातोकी विद्वानोको अच्छी तरह जाँच करनी चाहिये और जांचके द्वारा जैनागमका स्पष्ट व्यवहार लोगोको बतलाना चाहिये । ___ऊपरकी कसौटीसे दो एक कदमूलोकी जो सरसरी जाँच की गई है उसे भी आज पाठकोके सामने रख देना उचित जान पडता है। आशा है विद्वान् लोग उनपर विचार करके अपनी सम्मति प्रकट करेंगे : १-हमारे इधर अदरक बहुत ततु विशिष्ट होता है। तोडने पर वह समभगरूपसे नही टूटता, ऊंचा नीचा रहता है और बीचमे ततु खडे रहते हैं। छाल भी उसकी मोटी नही होती। ऐसी हालतमे वह अनतकाय नही ठहरता। बम्बईकी तरफका अदरक हमने नहीं देखा, परन्तु उसकी जो सोठ इधर आती है वह 'मैदा सोठ' कहलाती है और उसके मध्यमे प्राय वैसे ततु नही होते, इसलिये सभव है कि वह अनतकाय हो। २-गाजर भी अक्सर तोडने पर समभग रूपसे नही टूटती और न उसकी छाल मोटी होती है। इसलिये वह भी अनंतकाय मालूम नही होती।
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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