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________________ ७८६ युगवीर-निबन्धावली वह किसी मक्खनवालेका विज्ञापन नही है तो फिर वह क्या है ? किसका विज्ञापन अथवा चित्र है ? पंडितजी-वह तो जैनी नीतिके यथार्थ स्वरूपका सद्योतक चित्र है, और हमारे न्यायाचार्य महेन्द्रकुमारजीके कथनानुसार, 'जैन तत्त्वज्ञानकी तल-स्पर्शी सूझका परिणाम है' । यदि अनेकान्तदृष्टिसे उसे विज्ञापन भी कहे तो वह जैनी नीतिका विज्ञापन है-इस नीतिका दूसरोको ठीक परिचय कराने वाला है न कि किसी मक्खनवालेकी दुकानका विज्ञापन । उसपर तो 'जैनीनीति'के चारो अक्षर भी चार वृत्तोके भीतर सुन्दर रूपसे अंकित हैं जो ऊपर-नीचे, सामने अथवा बराबर दोनो ही प्रकारसे पढने पर यह स्पष्ट बतला रहे हैं कि यह चित्र 'जैनी नीति' का चित्र है। वृत्तोके नीचे जो 'स्याद्वादरूपिणी' आदि आठ विशेषण दिये है वे भी जैनीनीतिके ही विशेषण है-मक्खनवालेकी अथवा अन्य फर्मसे उनका कोई सम्बन्ध नही है । ( यह कह कर पडितजीने झोलेसे अनेकान्त निकाला और कहा--) देखिये, यह है अनेकान्तका नववर्षाङ्क । इसमे वे सब बातें अकित हैं जो मैंने अभी आपको बतलाई हैं । अब आप देखकर बतलाइये कि इसमें कहाँ किसी मक्खनवालेका विज्ञापन हैं ? सेठजी--(चित्रको गौरसे देखकर हैरतमे रह गये ! फिर ' बोले-) मक्खनवालेका तो यह कोई विज्ञापन नही है। यह तो हमारी भूल थी जो हमने इसे मक्खनवालेका विज्ञापन समझ लिया। पर यह 'जैनी नीति' है क्या चीज ? और यह ग्वालिनीके पास क्यो रहती है ? अथवा क्या यह कोई जैनदेवी है, जो विक्रिया करके अपने वे सात रूप बना लेती है, जिन्हे चित्र में अकित किया गया है ? जरा समझा कर बतलाइये।
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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