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________________ विवेककी आँख : ६ : एक पडितजी काशी वास करके उदर-पूर्णाके लिये देशविदेश भ्रमते-भ्रमते वाखमे पोथी दवाये हुए एक स्थान पर पहुँचे । वहाँ क्या देखते हैं कि मनुष्योकी एक बडी भारी भीड दूर तक लग रही है । एकके ऊपर एक गिरा पडता है । क्या मजाल, कोई भला आदमी अन्दर घुस सके, मारे धक्को के कचूमर निकला जावे । वेचारे पडितजी अपनी पोथी सभाले खडे खडे भोडका तमाशा देखने लगे । दो-चार आदमियोसे आपने पूछा भी कि यह क्या तमाशा है ? क्यो इतने लोग यहाँ पर जमा हैं ? परन्तु किसी ने उनकी बातको सुनना तक पसन्द नही किया और उत्तरमे जो कुछ शब्द उनको सुनाई पडे वे यही थे - "चुप रहो, बोलो मत । बडा मजा आ रहा है ।" इस पर पडितजी सोचने लगे कि ऐसा क्या अद्भुत तमाशा हो रहा है जिससे लोग इतने ध्यानारूढ हैं कि बातका उत्तर तक भी देना पसन्द नही करते, इसको एक बार जरूर देखना चाहिये | यह विचार कर पडितजीने उस भीडमे घुसने की ठान ली और अपने वस्त्रादिक समेटकर तथा अपनी पोथीको वगलमे मजबूती से दबाकर हिम्मतके साथ धकापेली करके भीडमें घुस पडे । आखिरको दो-चार धक्के - मुक्के खाकर और एक-दो मनुष्यकी मिन्नत - खुशामद करके पडितजी खडे हुए मनुष्योकी भीडको चीरकर अन्दर पहुँच ही गये । वहाँ जाकर क्या देखते हैं कि, हजारो आदमी दूर तक बैठे हैं, बडे-बडे अमीर और रईस तथा अच्छे-अच्छे प्रतिष्ठित पुरुष अपनी-अपनी
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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