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________________ पापका बाप : ५ : एक ब्राह्मण विवाह होनेके पश्चात् विद्या पढने के लिये काशी गया । वहाँ पर जब उसको १२, १३, वर्ष बीत गये और समस्त वेद-वेदागका पाठी बन गया तब गुरुकी आज्ञा लेकर अपने घर वापिस आया । घरपर आकर जब उसने अपनी विद्याका प्रकाश किया और अपने माता-पिता से प्रगट किया कि मैं इस प्रकार वेद-वेदागका पाठी हो गया हूँ, तब मातापिता के आनन्दका ठिकाना नही रहा, और नगर-निवासियोको भी उसकी विद्याका हाल मालूम करके अत्यन्त हर्प हुआउन्होने अपने नगरमे ऐसे विद्वान् के होने से अपना और नगरका वडा भारी गौरव समझा । - ब्राह्मण महोदयकी धर्मपत्नी एक अच्छे घरानेकी पढी-लिखी कन्या थी और वडी ही सुशीला, धर्मात्मा तथा उच्च विचारोको रखने वाली थी । रात्रि के समय जब वह ब्राह्मण अपनी स्त्री के पास गया और उससे, अपने विद्या पढनेका सारा दास्तान (हाल ) उसे सुनाया और हर प्रकारसे अपनी योग्यता और निपुणता प्रगट की तब उस विचारशीला स्त्रीने नम्रताके साथ अपने पतिदेव से यह पूछा कि, "आपने पापका बाप भी पढ़ा है या नहीं ?" इस प्रश्नको सुनते ही पतिराजके देवता कूच कर गये और सारी आवली - बावली ( विद्या - चतुराई ) भूल गये । आप सोचने लगे कि "पापका बाप" क्या ? मैंने व्याकरण, काव्य, छन्द, अलकार, ज्योतिष, वैद्यक और गणित आदिक सब ही विद्याएँ
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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