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________________ पं० ठाकुरदासजीका वियोग ७४९ सेवाके सत्कार्यमे भी प्रवृत्त हो सके। इसके लिये उन्होने अपने अन्तिम पत्र में भी कृतज्ञता व्यक्त की है। आपको पपौराजी और उसके विद्यालयसे बडा प्रेम था । दोनोकी उन्नतिमे आपका वडा हाथ रहा । जव आपको यह मालूम हुआ कि मैं कुछ अर्से के लिए दिल्ली छोड रहा हूँ तो आपने एक दो वार मुझे पपौराजी आकर रहनेको प्रेरणा की है और वहॉके स्वच्छ एव शात वातावरणको प्रशसा की है। इस बारकी उनकी बीमारीका कारण मई मासकी तीक्ष्ण गर्मी है जिसे वे सहन नही कर सके, जैसा कि उनके पत्रके इस वाक्यसे प्रकट है- "इस वृषादित्यकी प्रखरताने मेरे शरीरको विशेष अस्वस्थ कर दिया है।" हालमे उन्होंने स्वामी समन्तभद्रके उपलब्ध पांचो मूल ग्रन्थोका सम्पादन कर और इस सग्रहका 'समन्तभद्र भारती' नाम देकर उसपर अपना 'प्राक्कथन' लिखा है और यह ग्रन्थ श्री पडित नीरजजोके पास छपनेको गया हुआ है, ऐसा उक्त पत्रसे मालूम होता है। साथ ही और भी कई बातोका पता चलता है। इससे उस पत्रको आज यहाँ प्रकाशित किया जाता है। अन्तमे पडितजीके लिए परलोकमे सुख-शान्तिकी भावना करता हुआ उनके इस वियोगसे पीडित पुत्र, स्त्री आदि कुटुम्बीजनोके साथ अपनी समवेदना व्यक्त करता हूँ। आशा है सद्गतात्मा पडितजीका आध्यात्मिक जीवन उन्हे स्वत धैर्य बधानेमे समर्थ होगा।
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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