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________________ पं० ठाकुरदासजीका वियोग : १६ : १६ जून १९६५ के जैनसन्देश अक ११ मे टोकमगढके प्रसिद्ध विद्वान् प० ठाकुरदासजो बी० ए० का ६ जूनको स्वगवास जान कर एकदम चित्तको वडा धक्का लगा और दुब पहुँचा। आपके इस वियोगसे नि सन्देह जैन समाज की बडी क्षति हुई है, जिसकी सहजपूर्ति सभव नही है। आप सस्कृत-प्राकृत तथा हिन्दी भाषाके अच्छे प्रौढ विद्वान् होनेके साथ-साथ आध्यात्मिक रुचिके सत्पुरुप थे । पूज्य वर्णी श्रीगणेशप्रसादजी आपको बहुत आदरकी दृष्टिमे देखते थे। वर्णीजीको प्रेरणा और ला० राजकृष्णजीके आमंत्रणको पाकर जब आप समयसारका सशोधन-सम्पादनादि काय करने के लिये दिल्ली पधारे थे तभी आपसे मेरा साक्षात्कार हुआ था और जब तक आप दिल्ली ठहरे तब तक बराबर आपसे मिलना होता रहा और आप कई बार वारसेवामन्दिरमे भी सम्पादन-सशोधनादि सम्बन्धी परामर्श के लिये मेरे पास आते रहे हैं। उसके बादसे फिर पत्रो द्वारा सम्बन्ध चलता रहा, जो कि निधनको तारीखको ही समाप्त हुआ है। आपका अन्तिम पत्र २८ मईका जिखा हुआ ३०-३१ को मुझे मिल गया था, जिसका उत्तर मैने ६ जूनको लिखा था। लिखते समय मुझे क्या मालूम था कि आज ही स्वर्ग सिधार रहे हैं और इसलिये मेरा यह पत्र आपको नही मिलेगा। मैं तो उत्तरकी प्रतीक्षामें था कि अचानक ही स्वर्गवासकी उक्त दुःखद घटनाका समाचार मिला, यह एक बडे ही खेदका विपय है ।। __ पत्रो आदिसे जहाँ तक मुझे मालूम हुआ, स्वर्गीय पडितजी
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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