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________________ श्री पं० सुखलालजोका अभिनन्दन : १४ : मुझे ता० ५ जून १६५७ को 'जन' पत्रसे यह मालूम करके बडी प्रसन्नता हुई कि श्री प० सुखलालजीके 'सम्मान-समारभ' का वम्बईमे आयोजन किया जा रहा है और इसलिये मैने अगले ही दिन ६ जूनको अपनी ओरसे एक छोटी-सी रकम १०१) की, पडितजीको भेंट की जानेवाली सम्मान-निधिमे शामिल करनेके लिये, सम्मान-समितिके मत्रीजीको चैक द्वारा भेज कर अपने आनन्दकी अभिव्यक्ति की। प० सुखलालजो अपने व्यक्तित्वके एक ही व्यक्ति हैं। उन्होने बाल्यावस्थामे नेत्रोके चले जानेसे उत्पन्न हुई कठिन परिस्थितिमै विद्याभ्यास कर अनेक वस्तु-विषयोका कितना ही तल-स्पर्शी ज्ञान प्राप्त किया है और साथ ही वाणी तथा लेखनी दोनो मार्गोसे खुला वितरण भी किया है। उनमे गम्भीर-चिन्तनके साथ ग्रहण, धारण, स्मरण और विवेचनकी शक्तिका अच्छा स्पृहणीय विकास हुआ है और वे उदारता, नम्रता, गुण-ग्राहकता एव सेवाभाव- जैसे सद्गुणोके सम्मिश्रणको लिये हुए हैं । मुझे अनेक बार साक्षात् सम्पर्कमे आनेका अवसर प्राप्त हुआ है और मैंने उन्हे निकटसे देखा है। एक बार तो, जब मैं अहमदाबाद, गुजरात पुरातत्व-मन्दिरमे रिसर्चका कुछ काम करने गया था तब, मुझे एक महीनेसे भी अधिक समय तक आपके घरपर ही ठहरनेका सौभाग्य प्राप्त हुआ था और आपके आतिथ्यको पाकर ऐसा महसूस हुआ था कि मैं अपने ही घरपर कुटुम्बके मध्य रह रहा हूँ। पडितजी कितनी एकाग्रताके साथ ग्रन्थोको
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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