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________________ सन्मति -विद्या- विनोद ७२७ एक दिन रातको मुझे स्वप्न हुआ कि एक अर्धनग्न श्यामवर्ण स्त्री अपने आगे-पीछे और इधर-उधर मरे हुए बच्चोको लटकाए हुए एक उत्तरमुखी हवेलीमें प्रवेश कर रही है जो कि ला० जवाहरलालजी जैन की थी। इस बीभत्स दृश्य को देखकर मुझे कुछ भय-सा मालूम हुआ और मेरी आँख खुल गई। अगले ही दिन यह सुना गया कि ला० जवाहरलालजीके बडे लडके राजारामको प्लेग हो गई, जिसकी हालमे ही शादी अथवा गौना हुआ था । यह लडका बडा ही सुशील, होनहार और चतुर कारोवारी था तथा अपने से विशेष प्रेम रखता था । तीन-चार दिनमे ही यह कालके गालमे चला गया | इस भारी जवान मौत से सारे नगरमे शोक छा गया और प्लेग भी जोर पकडती गई । कुछ दिन बाद तुम्हारी माताने कोई चीज बनाकर तुम्हारे हाथ ला० जवाहरलालजीके यहाँ भेजी थी । वह शायद शोकके मारे घर पर ली नही गई । तब तुम किसी तरह ला० जवाहरलालजीको दुकान पर उसे दे आई थी। शामको या अगले दिन जव ला० जवाहरलालजी मिले तो कहने लगे कि - 'तुम्हारी लडकी तो बडी होशयार हो गई है, मेरे इन्कार करते हुए भी मुझे दुकान पर ऐसी युक्तिसे चीज दे गई कि मैं तो देखकर दङ्ग रह गया।' इस घटना से एक या दो दिन बाद तुम्हे भी प्लेग हो गई । और तुम उसीमे माघ सुदी १० मी सवत् १९६३ गुरुवार तारीख २४ जनवरी सन् १९०७ को सन्ध्या के छह बजे चल वसी || कोई भी उपचार अथवा प्रेम-बन्धन तुम्हारी इस विवशा गतिको रोक नही सका !! तुम्हारे इस वियोगसे मेरे चित्तको बडी चोट लगी थी और
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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