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________________ ६९२ युगवीर- निवन्धावली उत्सवको टकटकी लगाये देख रही थी, कलकत्तेके लम्बे-चौडे बाजार दर्शको से भरे हुए थे और दोनो ओरके कई मंजिले मकान की सभी मंजिलें दर्शको से पटी पडी थी - भीड के कारण नये आगन्तुकोको प्रवेशमं बडो दिक्कत होती थी । बाजारोमे ट्राम्बे तथा मोटर वसो आदिका चलना प्रात कालसे ही बन्द थाउनकी बन्दी के लिये पहले दिन ही पत्रो मे सरकारी आर्डर निकल गये थे । जलूसका झडा बहुत ऊंचा होने के कारण जगह-जगह पर बिजली के तार काट दिये जाते थे और फिर वादको जोडे जाते थे । यह खास रिआयत जैनसमाजको ही वहां अपने वार्षिकोत्सव के लिये प्राप्त है, जो कार्तिको पूर्णिमासे मंगसिर वदि पंचमी तक होता है, और जिससे यहाँ स्पष्ट है कि वहाँका जैनसमाज बहुत पहले से ही विशेष प्रभावशाली तथा राजमान्य रहा है । कलकत्ते की रथयात्राका यह जलूस भारतवर्षके सभी जैन - रथोत्सवके जलूसोसे बडा तथा महत्वका समझा जाता है । इसबार वीरशासन- महोत्सवके कारण यह और भी अधिक विशेषताको लिये हुए था और अपने रगढगसे जैनियो की सामाजिक प्रभावनाको दूसरोपर अकित कर रहा था । दिगम्बरोका जलूस चावलपट्टी के पंचायती मन्दिरसे चलकर बेलगछियाके उपवनी मन्दिर मे समाप्त हुआ था, जो बडा ही रमणीक स्थान है और वही पर महोत्सवका भव्य पण्डाल ( सभामण्डप ) बना था, जिसमे ऊंचे विशाल प्लेटफार्म ( स्टेज ) के अलावा बैठने के लिये कुर्सियां थी, बिजली की लाइट थी और लाउडस्पीकरोका भी प्रबन्ध था । जलूसकी समाप्तिपर भोजनसे निपटते ही उपस्थित जन पहुँचने शुरू हो गये और बात की बात में सभामण्डप
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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