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________________ ४४ राजगृहमें वीरशासन महोत्सव ६८९ लिये कुछ तामीरकी थी और उसपर उत्तम सगमर्मरपर बने हुए एक स्मृति-पट्टक (Iomorial ta.blot ) की स्थापना करनी थी। इस स्मृति-पट्टककी स्थापनाका श्रेय मुझे प्रदान किया गया, जिसके लिये मैं वा० छोटेलालजीका बहुत ही आभारी हूँ। ____ जिस महान ऐतिहासिक घटनाको यादगार कायम करनेके लिये यह स्मृतिपट्टक स्थापित किया गया उसके सम्बन्धमे उसी समय और स्थानपर उपस्थित सज्जनोमेसे ग्यारह विद्वानोने सक्षेपमै अपने जो हादिक उद्गार व्यक्त किये वे बडे ही मार्मिक थे, उन्हे सुनकर हृदय गद्गद् हुआ जाता था-उमडा पडता था-और वीरभगवानकी उस प्रथम देशनाके समयका साक्षात् चित्र-सा अकित हो रहा था। मैं तो प्रयत्ल करनेपर भी अपने आँसुओको रोक नहीं सका। उस समय चारो ओर जो प्रभाव व्याप्त था और जैसा कुछ आनन्द छाया हुआ था उसे शब्दोम अंकित करनेकी मुझमे शक्ति नही-वह तो उस समय वहां उपस्थित जनताकी अनुभूतिका ही विपय था। ऐसा मालूम होता था कि कोई अदृश्य शक्ति वहां काम कर रही है और वह सबके हृदयोको प्रेरणा दे रही है। उस समयके भापणकर्ता विद्वानोके उल्लेखनीय नाम ( क्रमश ) इस प्रकार हैं- (२) पडिता चन्दावाईजी, (३) प० कैलाशचन्द्रजी शास्त्री, (४) प० फूलचन्द्रजी सिद्धान्तशास्त्री, (५) न्यायाचार्य प० दरवारीलाल जी कोठिया, (६) प० परमानन्दजी शास्त्री (७) वा० शतोशचदजो शील (वगाली), (८) वा० लक्ष्मीचद्रजी एम० ए०, (६) वावू छोटेलालजी, (१०) वा० कौशलप्रसादजी, (११) बा० अशोककुमारजी (बंगाली)। भापणोके अनन्तर उस स्थानसे उठनेको किसीका जी नही चाहता था। आखिर मनको मारकर दूसरा प्रोग्राम पूरा
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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