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________________ राजगृहमें वीरशासन महोत्सव :६: जबसे वीरसेवामन्दिरने यह प्रस्ताव पास किया था कि वीरशासन-जयन्तीका गागामी उत्सव राजगृहमें उस स्थानपर ही मनाया जावे, जहाँ वीरशासनकी 'सर्वोदय-तीर्थधारा' प्रवाहित हुई थी, तबसे लोकहृदय उस पुनीत उत्सवको देखने के लिये लालायित हो रहा था और ज्यो-ज्यो उत्सवकी महानताका विचारकर लोगोकी उत्कण्ठा उसके प्रति बढती जाती थी, और वे बार-बार पूछते थे कि उत्सवकी क्या कुछ योजनाएं तथा तैय्यारियां हो रही हैं। इधर बिहार और बंगालके कुछ नेताओने, जिन्हे उत्सव के स्वागतादि-विषयक भारको उठाना था, राजगृहकी वर्षाकालीन स्थिति आदिके कारण जनताके कष्टोका कुछ विचारकर और अपनेको ऐसे समयमे उन कष्टोंके समक्ष बड़े उत्सवका प्रबन्ध करनेके लिये असमर्थ पाकर कलकत्तामें एक मोटिंग की और उसके द्वारा यह निर्णय किया कि उत्सवको दो भागोमे बाँटा जाय-एक वीरशासन-जयन्तीका साधारण वार्षिकोत्सव और दूसरा सार्धद्वयसहस्राब्दि-महोत्सव । पहला नियत तिथि श्रावण-कृष्ण-प्रतिपदाको और दूसरा कार्तिकमें दीपावलिके करीब रहे और दोनो राजगृहमे ही मनाये जावें। उत्सवके करीब दिनोमें इस समाचारको पाकर उत्सुक जनताके हृदयपर पानी पड गया-उसका उत्साह ठडा हो गया और अधिकाशको अपना बंधा-बंधाया बिस्तरा- खोलकर यही निर्णय करना, पडा कि वडे उत्सवके समय जाडोमे ही राजगृह चलेंगे। परन्तु जिनके
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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