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________________ हेमचन्द्र स्मरण ६७५ पुस्तक लिख रहा हूँ जो छपने पर खूब बिकेगी। उसी प्रकारकी कुछ अन्य पुस्तकें छपाऊँगा। कुछ बिक्रीपर पैसे जहाँके तहाँ अदाकर दूंगा और आगेकी आमदनीपर गुजारा कर लूँगा।" हेमके इस पत्रको प्रेमीजीने कही उसकी इच्छाके बिना पढ लिया था, अत: पत्रके अन्तमें इसका नोट देते हुए, हेमने अपने पिताकी सभ्यतापर खुला आक्रमण किया है। हेमके लेख-सम्बन्धमे प्रेमीजीने मुझे अपने २४ फरवरीके ही पत्रमे लिखा था-"हेमके लेखमे आपको परिश्रम काफी करना होगा । मैं तो उसे पूरा पढ भी नही सका हूँ, मेरा सशोधन उसे पसन्द भी नही है।" मार्च सन् १६३० में हेमका विवाह हो गया। इस विवाहके अवसरपर प्रेमीजी सख्त वीमार थे, उनके ऊपर साढेचार वर्षके बाद १ मार्चसे खास रोगका फिरसे आक्रमण हो गया था, जो उत्तरोत्तर बढता ही गया। चुनाचे प्रेमीजी अपने ६ अप्रैलके पत्रमे लिखते हैं-"विवाहके समयमे तो मेरी बहुत बुरी हालत हो गई थी। मुझे नही मालूम कब कौन-सा दस्तूर हआ। इसी विपत्तिके कारण मैं आपको कोई पत्र न लिख सका और न आपको आग्रहपूर्वक बुला ही सका । विवाह तो हो गया, परतु दुर्भाग्यसे न मैं और न हेमकी माता ही उसके सुखका कोई अनुभव कर सके।" प्रेमीजीके इन शब्दोमे कितनी वेदना भरी हुई है, इसे पाठक स्वय समझ सकते हैं । अस्तु, हेमके पत्रद्वारा विवाह सम्पन्नताका समाचार पाकर मैने अपने ५ अप्रैलके पत्रमे उसे आशीर्वाद देते हुए कही ऐसा लिख दिया था कि, अब तुम खूटेसे बँध गये हो, यह देखकर प्रसन्नता होती है । इसपर उसके स्वाभिमानको ठेस लगी और
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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