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________________ हेमचन्द्र स्मरण ६७३ शीर्षासन कर लेता था, परन्तु मुझे किसी गुरुका साक्षात् सम्पर्क प्राप्त नहीं हुआ था-सब कुछ अपने अध्ययनके बलपर ही चलता था, प्राणायामके विपयमे कुछ सन्देह होनेपर मैने हेमचन्द्र से एक प्रश्न पूछा था, जिसका उत्तर उसने ३० दिसम्बर सन् १९२६ के पत्रमे दिया था। इस उत्तरपरसे यह सहज ही मे जाना जा सकता है कि उस समय तक हेमचन्द्रने योग-विपयका कितना अनुभव तथा अभ्यास प्राप्त कर लिया था। उत्तरपत्रमें योग-विषयक कुछ लेखोके लिखनेकी इच्छा भी व्यक्त की गई थी, जिसे लेकर मैंने अनेकान्तके लिये कोई अच्छा लेख भेजनेकी उसे प्रेरणा की थी। उत्तरमे लेखकी स्वीकृति देते हुए हेमचन्द्रने १३ फरवरी सन् १९३० को जो पत्र दूसरा लिखा है उससे मालूम होता है कि उस समय उसकी ज्ञान-पिपासा बहुत बढी हुई थी, वह किसीको पत्रका उत्तर तक नहीं देता था, अध्ययनमननमे और पठितका सार खीचनेमे ही अपना सारा समय व्यतीत करता था, फिर भी उसे तृप्ति नही होती थी। लेख लिखने में अपनी कठिनाइयोका भी उसने पत्रमें सरल भावसे उल्लेख किया है। इसी समय उसके विवाह की चर्चा चल रही थी और वह एक प्रकारसे पक्की हो गई थी। योग-विद्यामे जो रस तथा आनन्द आ रहा था उसके मुकाबले में उसे इस विवाहकी कोई खुशी नही थी, वह इसे एक प्रकारका सकट समझता था और उस सकटको सरलतापूर्वक पार करने अथवा गृहस्थाश्रम की परीक्षामे समुत्तीर्ण होकर सुखसे जीवन-यापन करने के प्लैन (Plans ) सोचा करता था। उसकी इच्छा थी कि मैं स्वय निर्विकार रहते हुए अपनी सहमिणीको भी निविकार बनाकर योगमार्गमें दीक्षित कर दूं। इसी आदर्शको लेकर उसने विवाह
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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