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________________ हेमचन्द्र स्मरण ६७१ दीक्षा के विषय में जो परामर्श प्रेमीजी मुझसे मागते रहे हैं वह मैं उन्हें खुशी से देता रहा । दूसरी बार सन् १६२८ में जब में बम्बई गया और ६ जुलाई से ६ सितम्बर तक प्रेमीजीके पास ठहरा तब हेम बहुत कुछ शिक्षा प्राप्त कर चुका था । कई भाषाएँ सीख चुका था, उसकी समझ अच्छी विकसित हो रही थी और साथही उसमे ज्ञान-पिपासा जाग रही थी । प्रेमीजी अपनी अस्वस्थतादिके कारण चाहते थे कि हेम अब दुकान के कामको सँभाले और उसमे अधिक से अधिक योग देवे, परन्तु हेमको वह रुचता नही था, वह अपनी ही कुछ धुन में था और इसलिये दुकान के काममें बहुत कम योग देता था । प्रेमीजीको यह सब असह्य होता जाता था, वे हेमको एक सनकी तथा उद्दण्ड वालक तक समझने लगे थे और कभी-कभी उसे अच्छी खासी डाट-डपट भी बतला दिया करते थे, जिसका परिणाम उलटा होता था । हेम माँके पास जाकर रोता था, अपना दुख व्यक्त करता था और कभी-कभी घर से निकल जाने अथवा अपना कुछ अनिष्ट कर डालने की धमकी तक भी दे देता था । इससे माता-पिता दोनो की ही चिन्ता बढ जाती थी, क्योकि एकलौता पुत्र था । मेरे पहुँचनेपर प्रेमीजीने मुझे इस सारी स्थिति से अवगत किया और मेरे ऊपर हेमको समझानेका भार रक्खा । मैंने अनेक प्रकार से हेमको समझाया और उसके मनोभावोको जानने की चेष्टा की । हेम खुल गया और उसने मेरे सामने अपनी सारी अभिलाषा तथा दुख-दर्दको रख दिया। उसकी यह आम शिकायत थी कि प्रेमीजीसे उसे सदा झिडकियाँ ही प्राप्त होती रहती हैं - आत्मसम्मान नहीं मिलता । मैंने देखा
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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