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________________ शाहा जवाहरलाल और जैन ज्योतिप ६६७ वर्पकी आयुमे केवल यह एक ही त्रुटिपूर्ण कार्य करने पाया हूँ।" आप स्वय अपनी वचनिकामे अभी २० प्रतिशत त्रुटियोका अनुभव कर रहे हैं और उन्हे दूर करनेके प्रयत्नमे हैं, क्योकि ग्रथकी जो प्रति आपको उपलब्ध हुई वह बहुत कुछ अशुद्ध है। इसीसे ता० १८ जनवरी सन् १९४२ को जो पहला पत्र आपने मुझे लिखा, उसमे अपनेको प्राप्त कुछ जैन ज्योतिप ग्रन्थोका परिचय देते हुए तथा त्रैलोक्यप्रकाशकी टीका-समाप्तिकी सूचना करते हुए, शुद्ध प्रतियोके प्राप्त कराने आदिकी प्ररेणा की है जिससे जिन श्लोकोका अर्थ सदिग्ध है अथवा छोडना पडा है उस सबकी पूर्ति हो जाय तथा जैन-ज्योतिपके अन्य भी कुछ ग्रन्थ देखने को मिलें। इस पत्र मे दूसरे दो ग्रन्थोकी भी टीका किये जानेका उल्लेख करते हए और जैनज्योतिपग्रन्थोकी विलक्षण प्रक्रियाका कुछ नमूना दिखलाते हुए अन्तमे लिखा है-"आयुका कुछ भरोसा नही, इस कारण आज यह विचार हुआ कि ( यह सब सूचना ) वतौर रिकार्डके आपकी सेवामे भेज दूं।" इसके बाद आपने अपनी उक्त भापावच निकाको मेरे पास देखनेके लिए भेजा है, भद्रबाह-निमित्तशास्त्रके कुछ अध्यायोका अनुवाद भी भेजा है और 'लोकविजययत्र' नामके प्राकृत-गाथाबद्ध ग्रन्थकी टोका भी भेजी है। साथही जैन ज्योतिप-विषयक एक लेख भी प्रेषित किया है जिसमे अन्य बातोके अतिरिक्त जैनाचार्योंकी मान्यतानुसार चन्द्रमाको मन्दगामी और शनिको शीघ्रगामी सिद्ध किया है, जबकि अन्य ज्योतिविद् चन्द्रमाको शीघ्रगामी और शनिको मन्दगामी (शनैश्चर) बतलाते हैं। त्रैलोक्यप्रकाश, भद्रबाहुनिमित्तशास्त्र और और लोकविजययत्र इन तीनो मूलग्रथोकी आपने बडी प्रशसा
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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