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________________ ईसरीके सन्त श्रीमान् वर्णी गणेशप्रसादजी जैन-समाजके उन ख्यातिप्राप्त प्रौढ विद्वानोमेसे हैं जिन्होने आत्म-कल्याणके साथ-साथ विद्या-शिक्षाके प्रसारमे अपना सारा जीवन लगा दिया है। अबतकके कोई ६६ वर्षके जीवनमे आपने अनेक महान ग्रन्थोंके गहरे अध्ययन एव पठन-पाठनका कार्य किया है। बनारस तथा सागरके प्रसिद्ध महाविद्यालय आपकी खास कृतियां हैं। उनकी स्थापना और सचालनमें आपका ही प्रधान हाथ रहा है । और भी विभिन्न स्थानोपर आपने अनेक पाठशालाएँ स्थापित कराई हैं। विविध दर्शनोके अभ्यासके साथ-साथ आपने आध्यात्मिक रसका अधिक पान किया है और आप उसके खास रसिक वने हैं। इसीसे सभी कुछ छोड-छाडकर आप आजकल ईसरीमें श्री पार्श्वचरणमे स्थित हुए आत्म-साधनाकर रहे हैं। आपके निवाससे इस समय ईसरी एक तीर्थ-स्थानके समान बना हुआ है। अनेक मुमुक्षुजन दूर देशोसे आपका प्रवचन सुनने और आपके सत्सगसे लाभ उठानेके लिये यहाँ पहुँचते रहते हैं। आपका आध्यात्मिक प्रवचन बडा ही मार्मिक तथा प्रभावक होता है जिसे सुनकर जनता आत्मविभोर हो जाती है--सुनतेसुनते उसकी तृप्ति ही नही होती। इसीसे कितने ही सज्जन घर पहुँचकर पत्रो द्वारा भी आपके प्रवचनका कुछ अश प्राप्त करना चाहते हैं। आप समय-समयपर मुमुक्षुजनोको पत्र लिखकर उनकी जिज्ञासाकी तृप्ति करते रहते हैं । इस तरह
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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