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________________ भट्टारकीय मनोवृत्तिका नमूना ६४५ ( जैनमन्दिर ) को इस तरह चली जाती हैं जिस तरह कि राजाके घर वारागना ( रण्डी ) जाती है || हालमे इस भट्टारकीय मनोवृत्तिके परिचायक तीन पद्य मुझे एक गुटके परसे उपलब्ध हुए हैं, जो गत भादो मासमे श्री वैद्य कन्हैयालाल जी कानपुरके पाससे मुझे देखनेको मिला था और जिसे सिवनीका बतलाया गया है। यह गुटका २०० वर्ष से ऊपरका लिखा हुआ है । इसमे संस्कृत - प्राकृत आदि भाषाओके अनेक वैद्यक, ज्योतिष, निमित्तशास्त्र ओर जत्र-मंत्रतत्रादि विषयक ग्रन्थ तथा पाठ है । अस्तु, उक्त तीनो पद्य नीचे दिये जाते हैं, जो संस्कृत - हिन्दी - मिश्रित खिचडी भाषामे लिखे गये हैं और बहुत कुछ अशुद्ध पाये जाते हैं । इनके ऊपर "हृदे (दय ) वोध ग्रन्थ कथनीय ।" लिखा है । सभव है 'हृदय बोध' नामका कोई और ग्रथ हो, जिसे वास्तवमे 'हृदयवेध' कहना चाहिये और वह ऐसे ही दूषित मनोवृत्तिवाले पद्योसे भरा हो और ये पद्य ( जिनमे ब्रैकिटका पाठ अपना है ) उसीके अश हो " सूत उत्पत्यं (सुतोत्पत्तौ ) जगत्सर्वं हर्षमानं प्रजायतेः (ते) तेरापंथी वन्क (निक) पुत्रं (त्रे) रौरवं देवतागणाः ।। १ ।। त्रिदश १३ पंथरतौ (ता) निशिवासराः । गुरुविवेक त जानति निष्ठुरा. जप-तपे कुरुते वहु निष्फलां ( ला ) किमपि ये व ( ? ) जनासम काठया ॥ २ ॥ पुर्ष (रुष) रीत लपै निजकामिनी । प्रतिदिनं चलिजात जी (जि) नालये । गुरुमुखं नहि धर्मकथा नृपगृहे जिम श्रणं वरांगना ॥ ३ ॥ जाति
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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