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________________ एक ही अमोघ उपाय : ६ : व्र० शीतलप्रसादजीने कितनी ही बार यह पुकार मचाई हे कि हमारे बडे बडे पदवीधर अथवा उपाधिधारी पडितोको, जिनके ऊपर जैनसिद्धान्तोकी रक्षाका उत्तरदायित्व है, पडित दरवारीलालजीके उन लेखोका युक्ति-पुरस्सर उत्तर देना चाहिये जो "जैनधर्मका मर्म" नामको लेखमाला के अन्तर्गत 'जैनजगत्' मे प्रकाशित हो रहे हैं और जिनके द्वारा जैनधर्मके कितने ही महान् एव मूल सिद्धान्तोका मूलोच्छेद किया जा रहा हैउत्तर न देनेसे वडी हानि हो रही है । जव आपकी इन पुकारोपर कोई ध्यान नही दिया गया और इधर प० दरवारी - लालजीने जैनसमाज से अलहदगीसी अख्तियार करके “सत्यसमाज” की स्थापना कर डाली तब ब्रह्मचारीजी बहुत ही बेचैन हुए और उन्होने एक वडी ही जोरदार आवाज़ उठाई — जिसकी आपसे आशा भी नही की जा सकती थी— और उसे ११ अक्टूबर सन् १९३४ के जैनमित्र - द्वारा ब्रॉडकास्ट किया । इस गहरी पुकारमे आपने उक्त पडितोपर घोर अकर्मण्यता, कर्त्तव्यपालनमे उदासीनता, आलसीपन, उत्साहहीनता, साहसशून्यता, समाजसेवा से विमुखता, धार्मिकपतनता और घोर महाघोर कायरता आदिके आरोप ( इल्जाम ) लगाये, और उन्हे हर तरहसे मैदानमे उतरकर जैन- सिद्धान्तोपर होनेवाले आक्रमणको रोकने एव सिद्धान्तोकी रक्षा करनेके लिये प्रेरित किया । और यहाँतक भी कह डाला कि यदि इन पडितो से सिद्धान्तरक्षा और जैनधर्मकी प्रभावनाका यह हेतु सिद्ध नही
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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