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________________ प्रवचनसारका नया सस्करण ५८७ । टीकामे 'नवतत्व' एव 'सप्तपदार्थ' शब्दोका प्रयोग किया है तथा 'व्यवहारसूत्र' का उल्लेख किया है, इससे ज्यादासे ज्यादा इतना ही पाया जाता है कि उन्हे श्वेताम्बर साहित्यका गाढ परिचय था और इस तरहपर प्रकारान्तरसे यह स्वीकृत अथवा सूचित किया है कि इन पष्ठ-अष्टम उपवासादिक जैसी बातोका एक मात्र सम्बन्ध श्वेताम्बर साहित्यसे है-वहीपरसे उन्हे अपने ग्रथोमे लिया गया है । परन्तु ऐसा नहीं है । दिगम्बर सम्प्रदायके प्रायश्चित्तादिग्रन्थोमे अष्टमादि उपवासोका कितना ही वर्णन है और कल्पके साथ व्यवहार-सूत्रका उल्लेख भी पाया जाता है । 'धवला' मे तपविद्याओका स्वरूप देते हुए स्पष्ट ही लिखा है कि "छठ्ठठ्ठमादि तपवासविहाणेहि साहिदाओ तव विज्जाओ" अर्थात् जो षष्ठ अष्टमादि उपवासोंके द्वारा सिद्धि की जाती है वे तपविद्याएँ हैं। धरसेनाचार्यने भूतवलि और पुष्पदन्तको जो दो विद्याएँ सिद्ध करनेको दी थी उन्हे भी धवलामे "एदाओ छट्टोववासेहि साहेदु ति" इस वाक्यके द्वारा षष्ठोपवाससे सिद्ध करनेको लिखा है। पूज्यपादने 'निर्वाणभक्ति मे “षष्ठेन त्वपराहणमक्तेन जिनः प्रवनाज" जैसे वाक्योके द्वारा श्रीवीर भगवानके षष्ठोपवासके साथ दीक्षित होने आदिका उल्लेख किया है। और कुन्दकुन्दने 'योगभक्ति' मे जो "वंदे चउत्थमत्तादिजावछम्मासखवणपडिवण्णे" ऐसा लिखा है वह भी सब इन्ही उपवासोका सूचक है, और अधिक प्रमाणके लिये मूलाचारको 'छठट्ठमदसमदुनादसेहि' इत्यादि गाथाका नाम ले देना पर्याप्त होगा, जिसमे इन उपवासोका खुला विधान किया है। इसके सिवाय, अमृतचन्द्रने समयसार गाथा ३०४, ३०५ की टीकामें व्यवहारसूत्रकी जिन गाथाओको उद्धृत किया है वे श्वेताम्बरीय 'व्यवहारसूत्रमे, जो कि गद्यात्मक है, नही
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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