SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 589
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रवचनसारका नया संस्करण | ५८३ कर्तृत्व-विषयमे उक्त प्रथावली बिल्कुल मौन है, लिम्बडीके भण्डारमे भी उसका अस्तित्व है परन्तु उसकी सूची भी कर्तृत्वविषयमे कोई सूचना नहीं देती। इससे 'सिद्धपाहुड' ग्रथ दिगम्बर है या श्वेताम्बर, यह अभी कुछ भी नही कहा जा सकता। हो सकता है कि वह कुन्दकुन्दके ८४ पाहुडोमेसे ही कोई पाहुड हो। ___'षट्खण्डागम' के प्रथम तीन खण्डो पर कुन्दकुन्द-द्वारा रची हुई 'परिकर्म' नामकी टीकाका विचार करते हुए और उसकी रचनाको कुछ कारणोसे सन्दिग्ध बतलाते हुए पृष्ठ न० १८ पर, यह भी प्रकट किया गया है कि 'धवला' और 'जयधवला' नामकी टीकाओमे उसके कोई चिह्न नही पाये जाते । परन्तु धवला टीकामें तो 'परिकर्म' नामक ग्रथका उल्लेख, 'परियम्मे वृत्त' 'परियम्मसुत्तेण सह विज्झइ' इत्यादि रूपसे अनेक स्थानोपर पाया जाता है। यह परिकर्म ग्रथ वह तो हो नही सकता जो 'दृष्टिवाद' नामक १२वें अगका एक खास विभाग–अनेक उपविभागोको लिये हुए है, जिसका अस्तित्व बहुत समय पहलेसे उठ चुका था और जो शायद कभी लिपिबद्धभी नही हुआ था । तब यह 'परिकर्म' ग्रथ षट्खण्डागमकी टीकारूपमै इन्द्रनन्दिश्रुतावतारके कथनानुसार कुन्दकुन्दकृत है या विबुध श्रीधरके मतानुसार कुन्दकुन्दके शिष्य कुन्दकीर्तिका बनाया हुआ है ? अथवा षट्खण्डागमकी टीका न होकर कोई स्वतन्त्र ग्रन्थ है और उक्त दोनोमेसे एकने या किसी तीसरेने ही इसकी रचनाकी है ? ये सब बातें विचार किये जानेके योग्य हैं। टीकारूपमे प्रथम दोमेसे किसीकी भी कृति होनेपर कुन्दकुन्दके समय निर्णयपर इससे कितना ही प्रकाश पड सकता है। मालूम होता है 'धवला' का सामान्य रूपसे अवलोकन
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy