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________________ जयधवलाका प्रकाशन ५६९ आने रक्खा गया है-समाचारपत्रोमे, चार चार आनेके टिकट भेजकर लोगोको इस अशकी खरीदारी कर जयधवलका दर्शन करनेकी प्रेरणा की जा रही है। जब नमूनेका ही इतना मूल्य है तब ऐसा मालूम होता है कि ग्रथका मूल्य बहुत अधिक रक्खा जायगा, जिसे मैं किसी तरह भी उचित नही समझता । इस विपयमे दिगम्बर समाजको अपने श्वेताम्बरी भाइयोसे शिक्षा लेनी चाहिये, जो आगमोदयसमिति आदिके द्वारा बहुत कुछ सस्तेमे अपने आगम ग्रन्थोका प्रचार करके अपनी श्रुतभक्तिका परिचय दे रहे हैं। ___ इसमे सन्देह नही कि यह ग्रथ जिस रूपमे भी प्रकाशित होगा निकल जायगा जरूर और नही तो सस्थाओ तथा मन्दिरोमे ही इसकी एक एक कॉपी मँगा ली जायगी, क्योकि लोग मुनिदर्शनकी तरह इसके भी दर्शनोके भूखे हैं, परन्तु ऐसा त्रुटिपूर्ण सस्करण निकालनेसे गलतियाँ और गलतफहमियाँ बहुत कुछ रूढ हो जायँगी, जिनका सुधार होना फिर अत्यन्त ही कठिन कार्य होगा। इसीसे प्रकाशित अश पर अपनी सम्मतिका कुछ विस्तार के साथ लिख देना ही मैने उचित समझा है । आशा है दूसरे विद्वान् भी इस पर अपनी योग्य सम्मति देनेकी कृपा करेंगे और जहाँ तक हो सके ऐसा यत्न करेगे जिससे इन सिद्धान्त-ग्रन्थोका प्रथम सस्करण बहुत ही शुद्ध, स्पष्ट, अभ्रान्त और उपयोगी प्रकाशित होवे । १. जैन जगत वर्ष १०, अक ३, ता० १-१-१६३४
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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