SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 565
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जयधवलाका प्रकाशन ५५९ बला करके पहले ठीक कर लिया जाय, जो वहाँ ताडपत्रादिपर सुरक्षित है। मूडविद्रीके पञ्च जब 'महाधवल' नामसे प्रसिद्ध होनेवाले ग्रथकी कॉपी तक देनेके लिए रजामन्द सुने जाते हैं तब वहाँ ठहरकर मुकाबलेका यह कार्य हो जाना कोई वडी बात नही है। सेठ रावजी सखाराम दोशी आदिके प्रयत्न करनेपर इसके लिए भी उनकी स्वीकृति मिल सकती है। यदि किसी तरहपर भी मुकाबलेका यह कार्य न हो सके तो फिर प० गजपति शास्त्रीकी कनडी अक्षरोमे लिखी हुई उस प्रतिपरसे मुकावला किया जाना चाहिए जो ला० प्रद्युम्नकुमार जी रईस सहारनपुरके मन्दिरमे मौजूद है और जिस परसे ही उत्तर भारतमे ग्रन्थप्रतिका कार्य प० सीताराम शास्त्री-द्वारा प्रारम्भ हुआ है। साथ ही, देवनागरी अक्षरोमे लिखी हुई प० सीताराम शास्त्रीके पासकी उस प्रथम प्रतिको भी तुलनात्मक दृष्टिसे देख लेना चाहिए जो गजपति शास्त्रीको प्राय बोल कर लिखाई हुई अथवा उनकी देखरेखमे लिखी हुई कही जाती है और जिसके आधारपर ही प० सीताराम-द्वारा सहारनपुर आदिकी प्रतियाँ तय्यार हुई है। इस प्रतिकी भी अप्राप्तिमे, प० सीताराम शास्त्री की लिखी हुई प्राय उन सभी प्रतियोको मुकाबलेके लिए सामने रखना चाहिए जो सहारनपुर, आरा, शोलापुर, आदिमे मौजूद हैं, क्योकि उक्त शास्त्रीकी लिखी हुई इन प्रतियोमे अनेक स्थानोपर पाठभेद पाया जाता है-किसी किसी प्रतिमे कोई पाठ छूट गया है तो दूसरी प्रतिमे वह उपलब्ध होता है अथवा अतिरिक्त या परिवर्तित रूपमे भी पाया जाता है। सबको सामने रखकर मुकाबला करनेसे ही वह 'पूर्ण सशोधन' का कार्य ठीक बन सकेगा जिसकी योजनापत्रकमे सूचना की गई है। (२) हिन्दी अनुवाद ठीक ठीक होनेके साथ सुव्यवस्थित,
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy