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________________ ५५० युगवीर निवन्धावली शताब्दी बादकी बनी हुई है। परन्तु इसका कोई प्रमाण नही दिया गया। सिर्फ, विक्रमकी १७ वी शताब्दिमे बनी हुई स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षाकी टीकाम इस टीकाके कुछ अश उदधृत किये गये है, इतने परसे ही उक्त निश्चय दृढ किया गया है, जो ठीक नहीं है । ऐसा करना तर्क-पद्धतिसे विल्कुल गिरा हुआ है। इसके लिये कुछ विशेष अनुसवानोकी जरूरत है । ब्रह्मदेवने अपनी इस टीकाकी प्रस्तावनामे लिखा है कि 'यह द्रव्यसग्रह नेमिचन्द्रसिद्धान्तिदेवके द्वारा, भाण्डागारादि अनेक नियोगोके अधिकारी सोमनामके राजश्रेष्ठिके निमित्त, आश्रमनाम नगरके मुनिसुव्रत चैत्यालयमे रचा गया है, और वह नगर उस समय धाराधीश महाराज भोजदेव कलिकालचक्रवतिसंवन्धी श्रीपाल मडलेश्वरके अधिकारमे था।' साथ ही यह भी सूचित किया है कि 'पहले २६ गाथा-प्रमाण लघुद्रव्यसग्रहकी रचना की गई थी, पीछेसे, विशेष तत्त्वपरिज्ञानार्थ, उसे बढाकर यह बृहद्रव्यसग्रह बनाया गया है। प्रोफेसर साहबने ब्रह्मदेवके इस कथनको अस्वीकार किया है और उसके दो कारण बतलाये हैं-एक यह कि, खुद द्रव्यसग्रहमे इस विषयका कोई उल्लेख नही है, तथा नथके अन्तिम पद्यमे ग्रथका नाम 'बृहद्र्व्यसग्रह' न देकर 'द्रव्यसग्रह' दिया है। और दूसरा यह कि, यदि इस कथनके अनुसार नेमिचन्द्रका अस्तित्व मालवाके राजा भोजके राजत्वकालमें माना जाय तो नेमिचन्द्रका समय उस समयसे पीछे हो जाता है जो कि शिलालेखो और दूसरे प्रमाणोके आधारपर इससे पहले सिद्ध किया जा चुका है ( अर्थात् ईसाकी १० वी शताब्दिके स्थानमे ११ वी शताब्दि हो जाता है)। इन दोनो कारणोमेसे पहला कारण बहुत साधारण है और उससे कुछ भी साध्यकी सिद्धि नही हो सकती। ग्रथकर्ताके लिये ग्रथमे इस
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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