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________________ हीराचन्दजी बोहराका नम्र निवेदन और कुछ शकाएँ ४९१ "यदि यह आशका ठीक हुई तो नि सन्देह भारी चिन्ताका विषय है और इस लिए कानजी स्वामीको अपनी पोजीशन और भी स्पष्ट कर देनेकी जरूरत है। जहाँ तक मैं समझता हूँ कानजी महाराजका ऐसा कोई अभिप्राय नही होगा जो उक्त चौथा जैन-सम्प्रदायके जन्मका कारण हो । परन्तु उनकी प्रवचनशैलीका जो रुख चल रहा है और उनके अनुयायिओकी जो मिशनरी प्रवृत्तियाँ प्रारम्भ हो गई है उनसे वैसी आशकाका होना अस्वाभाविक नही है और न भविष्यमे वैसे सम्प्रदायकी सृष्टिको ही अस्वाभाविक कहा जा सकता है। अत कानजी महाराजकी इच्छा यदि सचमुच चौथे सम्प्रदायको जन्म देने की नही है, तो उन्हे अपने प्रवचनोके विपयमे बहुत ही सतर्क एव सावधान होने की जरूरत है-उन्हे केवल वचनो द्वारा ही अपनी पोजीशनको स्पष्ट करनेकी जरूरत नहीं है, बल्कि व्यवहारादिकके द्वारा भी ऐसा सुदृढ प्रयत्न करने की जरूरत है जिससे उनके निमित्तको पाकर वैसा चतुर्थ सम्प्रदाय भविष्यमें खडा न होने पावे, साथ ही लोक-हृदयमे जो आशका उत्पन्न हुई है वह दूर हो जाय और जिन विद्वानोका विचार उनके विषयमे कुछ दूसरा हो चला है वह भी बदल जाय । आशा है अपने एक प्रवचनके कुछ अशो पर सद्भावनाको लेकर लिखे गये इस आलोचनात्मक लेखपर कानजी महाराज सविशेष रूपसे ध्यान देनेकी कृपा करेंगे और उसका सत्फल उनके स्पष्टीकरणात्मक वक्तव्य एव प्रवचनशैली की समुचित तब्दीलीके रूपमे शीघ्र ही दृष्टिगोचर होगा।" __ मेरे इस निवेदन को पांच महीनेका समय बीत गया, परन्तु खेद है कि अभीतक कानजी स्वामीकी ओरसे उनका कोई वक्तव्य मुझे देखनेको नही मिला, जिससे अन्य बातोको छोडकर कमसे
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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