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________________ ४८२ युगवीर-निवन्धावली अस्वाभाविक कहा जा सकता है। अत कानजी महाराजकी इच्छा यदि सचमुच चौथे सम्प्रदायको जन्म देनेकी नही है, तो उन्हे अपने प्रवचनोके विषयमे बहुत ही सतर्क एव सावधान होनेकी जरूरत है उन्हे केवल वचनो-द्वारा अपनी पोजीशनको स्पष्ट करनेकी ही जरूरत नहीं है, बल्कि व्यवहारादिके द्वारा ऐसा सुदृढ प्रयत्न करनेकी भी जरूरत है जिससे उनके निमित्तको पाकर वैसा चतुर्थ सम्प्रदाय भविष्यमे खडा न होने पावे, साथ ही लोक-हृदयमे जो आशंका उत्पन्न हुई है वह दूर हो जाय और जिन विद्वानोका विचार उनके विषयमें कुछ दूसरा हो चला है वह भी बदल जाय। आशा है अपने एक प्रवचन-लेखके कुछ अशोपर सद्भावनाको लेकर लिखे गये इस आलोचनात्मक लेख पर' कानजी महाराज सविशेषरूपसे ध्यान देनेकी कृपा करेंगे और उसका सत्फल उनके स्पष्टीकरणात्मक वक्तव्य एव प्रवचन-शैलीकी समुचित तब्दीलीके रूपमे शीघ्र ही दृष्टिगोचर होगा । १ प्रस्तुत प्रवचन-लेखमे और भी बहुत सी बातें आपत्तिके योग्य हैं, जिन्हें इस समय छोडा गया है-नमूनेके तौर पर कुछ बातोंका ही यहाँ दिग्दर्शन कराया गया है-जरूरत होनेपर फिर किसी समय उनपर विचार प्रस्तुत किया जा सकेगा। २. अनेकान्त वर्ष १२, किरण ६,८ और वर्ष १३ कि०, १ नवम्बर १९५३, जनवरी और जुलाई १९५४ ।
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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