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________________ -फTA ४४६ युगवीर-निवन्धावली यहाँ विषयको ठीक हदयङ्गम करनेके लिए इतना और भी जान लेना चाहिए कि जिनशासनको जिनवाणीकी तरह जिनप्रवचन, जिनागम-शास्त्र, जिनमत, जिनदर्शन, जिनतीर्थ, जिनधर्म और जिनोपदेश भी कहा जाता है—जैनशासन, जैनदर्शन और जैनधर्म भी उसीके नामान्तर है, जिनका प्रयोग भी कानजी स्वामीने अपने प्रवचनमे जिनशासनके स्थानपर उसी तरह किया है जिस तरह कि 'जिनवाणी' और 'भगवानको वाणी' जैसे शब्दोका किया है। इससे जिन-भगवानने अपनी दिव्य-वाणीमे जो कुछ कहा है और जो तदनुकूल बने हुए सूत्रो-शास्त्रोमे निवद्ध है वह सब जिनशासनका अग है, इसे खूब ध्यान रखना चाहिये । अब मैं श्रीकुन्दकुन्दाचार्य-प्रणीत 'समयसार'के शब्दोमे ही यह बतला देना चाहता हूँ कि श्रीजिनभगवानने अपनी वाणीमे उन सब विषयोकी देशना ( शास्ति ) की है जिनकी ऊपर कुछ सूचना दी गई है । वे शब्द गाथाके नम्बर सहित इस प्रकार है ववहारस्स दरीसणमुवएसो वण्णदो जिणवरोहिं। जीवा एदे सव्वे अज्झवसाणादओ भावा ॥४६॥ एमेव य ववहारो अज्झवसाणादि अण्णभावाणं । जीवो त्ति कदो सुत्ते....................... ॥४८॥ ववहारेण दु एदे जीवस्स हवंति वण्णमादीया। गुणठाणंता भावा ण दु केई णिच्छयणयस्स ॥५६॥ तह जीवे कम्माण णोकम्माण च पस्सिटु वण्णं । जीवस्स एस वण्णो जिणेहिं ववहारदो उत्तो ॥५९॥ एवं गंधरसफासरूवा देहो संठाणमाइया जे य । सव्वे ववहारस्स य णिच्छयदण्हू ववदिसंति ॥६०॥ पज्जत्ताऽपज्जता जे सुहमा वादरा य जे चेव । देहस्स जीवसण्णा सुत्ते ववहारदो उत्ता ॥३७॥
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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