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________________ अर्थ-समर्थन . अर्थात्-कोशलादिक देशोके सिवाय उनके अन्तराल' देश भी स्थापित हुए थे, जिनमे लुन्धक, आरण्यक, चरक, पुलिन्द और शवरादिक लोग निवास करते थे। शास्त्रोमे पुलिन्द और शव'रादिकको म्लेच्छ वर्णन किया है। जैसा कि स्वामी अकलंकदेव प्रणीत राजवातिकके इस वक्यसे प्रगट है कि 'शकयवनशवरपुलिन्दादय म्लेच्छा' अर्थात् शक, यवन, शबर और पुलिन्दादिक लोग म्लेच्छ होते हैं। जिन देशो में प्राय ऐसे ही लोग निवास करते हैं वे म्लेच्छ देश कहलाते हैं। इसलिये ये पुलिन्द और शबरादिकके देश भी म्लेच्छ देश थे और इससे यह सिद्ध होता है कि आर्यखंडमे पहले भी म्लेच्छोके कुछ देश अलग थे। पडितजीका अपने लेखमे विना किसी प्रमाणके यह लिखना कि 'म्लेच्छोकी शवर, विलाल, भील और चाडाल जातियां पचमकालमें ही होती हैं' बिलकुल गलत मालूम होता है। क्योकि ऊपर उद्धृत किये हुए आदिपुराणके श्लोकसे यह साफ विदित हो रहा है कि चतुर्थकालके आदिमें भी शवर और पुलिन्दादिक जातियां मौजूद थी। इसके सिवाय चतुर्थकाल-सम्बधिनी सैकडो कथाओमे भील और चाडालोका जिक्र पाया जाता है। फिर कैसे कहा जा सकता है कि वे पचमकालमे ही पैदा होती हैं ? इसी प्रकार पडितजीका यह लिखना भी गलत मालूम होता है कि 'वर्तमान भूगोलके जितने देश हैं वे आर्य थे, काल-दोपसे 'धर्मभ्रष्ट होनेसे भीलादि कहलाने लगे।' क्योकि ऊपरके कथनसे प्रगट है कि ये सब देश आर्य नही थे और चतुर्थकालमें भी यहाँ भीलादिक लोग मौजूद थे। इसके सिवाय आदिपुराणमे १ सरहदी देश अर्थात् एक देशको सीमासे दूसरे देशकी सीमा तक दरम्यान देश ।
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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