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________________ कानजी स्वामी और जिनशासन इस निवेदनका प्रधान सकेत उन त्यागी महानुभावोक्षुल्लको, ऐलको, मुनियो, आत्मार्थिजनो तथा नि स्वार्थ-सेवापरायणोकी ओर था जो अध्यात्मविषयके रसिक है और सदा समयसारके अनुचिन्तन एवं पठन-पाठनमे लगे रहते हैं । परन्तु किसी भी महानुभावको उक्त निवेदनसे कोई प्रेरणा नही मिली अथवा मिली हो तो उनकी लोकहितकी दृष्टि इस विषय में चरितार्थ नही हो सकी और इस तरह प्राय छह महीनेका समय यो ही बीत गया । इसे मेरा तथा समाजका एक प्रकारसे दुर्भाग्य ही समझना चाहिये । ४३५ गत माघ मासमे ( जनवरी सन् १९५३ में ) मेरा विचार वीरसेवामन्दिरके विद्वानो - सहित श्रीगोम्मटेश्वर - बाहुबलीजीके मस्तकाभिषेकके अवसर पर दक्षिणकी यात्राका हुआ और उसके प्रोग्राममे खास तौरसे जाते वक्त सोनगढका नाम रक्खा गया और वहाँ कई दिन ठहरनेका विचार स्थिर किया गया, क्योकि सोनगढ श्रीकानजीस्वामीमहाराजकी कृपासे आध्यात्मिक प्रवृत्तियोका गढ़ बना हुआ है और समयसारके अध्ययन-अध्यापनका विद्यापीठ समझा जाता है । वहाँ स्वामीजी से मिलने तथा अनेक विषयोके शका समाधानकी इच्छा बहुत दिनोसे चली जाती थी, जिनमे समयसारका उक्त विषय भी था, और इसीलिये कई दिन ठहरनेका विचार किया गया था । मुझे बडी प्रसन्नता हुई जबकि १२ फरवरीको सुबह स्वामीजीका अपने लोगोंके सम्मुख प्रथम प्रवचन प्रारम्भ होनेसे पहले ही सभाभवनमें यह सूचना मिली कि 'आजका प्रवचन सययसारकी १५वी गाथा पर मुख्तार साहबकी शंकाओको लेकर उनके समाधान- रूपमे होगा ।' ओर इसलिये मैंने उस प्रवचनको बडी
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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