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________________ ४१६ युगवीर-निबन्धावली अपनी सोपानोसे उतर कर आनन्दके साथ यथास्थान बैठते हैं। और जिसका वर्णन आगेके निम्न पद्योमे दिया है : छत्रचामरभवाद्यवहाय जयातिर। आप्तेरनुगताः कृत्वा विशन्त्यंजलिमीश्वराः ॥१७४॥ प्रविश्य विधिवद्भक्तया प्रणम्य मणिमौलयः । चक्रपीटं समारुह्य परियन्ति निरीश्वरम् ।।१७।। पूजयन्तो यथाकामं स्वशक्तिविभवार्चनैः । सुराऽसुरनरेन्द्राधा नामादेशं (?) नमन्ति च ॥१६॥ ततोऽवतीर्य सौपानेः स्वैः स्वैः स्वाञ्जलिमौलयः । रोमाञ्चव्यक्तहस्ते यथास्थानं समासते ॥१७७॥ ----हरिवशपुराण सर्ग ५७ इन पद्योके साथमे आदिपुराणके निम्न पद्योको भी ध्यानमे रखना चाहिये, जिनमे भरतचक्रवर्तीके समवसरणस्थित श्रीमण्डपप्रवेश आदिका वर्णन है और जिनसे सक्षेपमे यह जाना जाता है कि मानस्तम्भोको आदि लेकर समवसरणकी कितनी भूमि और कितनी रचनाओको उल्लघन करनेके बाद अन्त प्रवेशकी नौबत आती है, और इसलिए अन्त प्रवेशका आशय श्रीमण्डप-प्रवेशसे है, जहाँ चक्रपीठादिके साथ गन्धकुटी होती है, न कि समवसरणप्रवेशसे - परीत्य पूजयन्मानस्तम्भानत्यत्ततः परम् । खातां लतावनं सालं वनानां च चतुष्टयम् ॥१८॥ द्वितीयसालमुत्क्रम्य ध्वजान्कल्पद्रुमावलिम् । स्तूपान्प्रासादमालां च पश्यन् विस्मयमाप सः ॥१७॥ ततो दौवारिकैर्देवैः सम्भ्राम्यद्धिः प्रवेशितः। श्रीमण्डपस्य वैदग्धीं सोऽपश्यत्स्वर्गजित्वरीम् ॥१६॥
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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