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________________ युगवीर-निवन्धावली और नाथवंशादिक प्राचीन क्षत्रिय वशोका जो कि उत्तम और सर्वश्रेष्ठ वश थे, उच्छेद हो जायगा अर्थात् उनका कोई वशधर न रहेगा, तव उनसे दूसरे दर्जेपर घटिया और हीन वशके क्षत्रिय ही पृथ्वीका पालन करेगे, क्षत्रियोका ही धर्म पृथ्वीका पालन करना है। इसलिये यही अर्थ ठीक और प्रकरणके अनुकूल जंचता है कि "पचमकालमे आदि क्षत्रियवंशोका उच्छेद हो जायगा और उनसे कुछ हीन वंश वा कुलके मनुष्य पृथ्वीका पालन करेंगे।" नहीं मालूम पडितजीने यह कहांसे निर्धारित किया है कि मलेच्छ कुलमे ही राज्य होगा ? और न यही मालूम होता है कि बड़े कुलके उनकी सेवा करें। यह अर्थ पडितजीने कौनसे शब्दोका निकाला है ? अथवा पडितजी किन कुलोको वडे कुल और किनको छोटे कुल समझते हैं ? यदि पडितजी अपनी इच्छानुसार म्लेच्छकुलमे ही राज्यका होना मानेगे तब उन्हे पचमकालमे होनेवाले महाराजा चामुंडराय, चन्द्रगुप्त, अमोघवर्ष, शिवकोटि, सिन्धुल, भोज, राजकुमार, शुभचन्द्र, राजा कुमारपाल तथा दक्षिण कर्नाटक और महाराष्ट्र देशके अन्य जैन राजा-सभीको म्लेच्छ कुलोत्पन्न कहना पडेगा, परन्तु ऐसा नही है। न ये लोग म्लेच्छ थे और न म्लेच्छकुलोत्पन्न, बल्कि श्रेष्ठ वंशोके उत्पन्न हुए राजा थे और इनमेसे कईने जिन-दीक्षा भी धारण की है। अफसोस ! पडितजीने इसका कुछ भी खयाल नही किया और वैसे ही विना सोचे-समझे आँख बन्द करके लिख मारा । दूसरे श्लोकके अर्थ-सन्बन्धमे पडितजीने जो कुछ लिखा है उससे मालूम होता है कि आप इस श्लोकके अर्थसे बहुत ही विचलित हुए हैं। आपने 'प्रत्यन्त' शब्दका अर्थ नही समझा,
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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