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________________ समवसरणमें शूद्रोंका प्रवेश : १७ : जैनतीर्थहरोके दिव्य-समवसरणमे, जहां सभी भव्यजीवोको लक्ष्यमे रखकर उनके हितका उपदेश दिया जाता है, प्राणीमात्रके कल्याणका मार्ग सुझाया जाता है और मनुष्योमनुष्योमे कोई जाति-भेद न करके राजा-रड, सभी गृहस्थोके वैठनेके लिये एक ही बलयाकार मानवकोठा नियत रहता है; जहाँके प्रभावपूर्ण वातावरणसे परस्परके वैरभाव और प्राकृतिक जातिविरोध तकके लिये कोई अवकाश नही रहता, जहां कुत्तेबिल्ली, शेर-भेडिये, सांप-नेवले, गधे-भैसे जैसे जानवर भी तीर्थकरकी दिव्यवाणीको सुननेके लिए प्रवेश पाते हैं और सब मिलजुलकर एक ही नियत पशुकोठेमे बैठते हैं, जो अन्तका १२वा होता है, और जहाँ सबके उदय-उत्कर्पकी भावना एवं साधनाके रूपमे अनेकान्तात्मक 'सर्वोदय तीर्थ' प्रवाहित होता है वहाँ श्रवण, ग्रहण तथा धारणकी शक्तिसे सम्पन्न होते हुए भी शूद्रोके लिए प्रवेशका द्वार एकदम बन्द होगा, इसे कोई भी सहृदय विद्वान अथवा बुद्धिमान माननेके लिये तैयार नहीं हो सकता । परन्तु जैनसमाजमे ऐसे भी कुछ पण्डित हैं जो अपने अद्भत विवेक, विचित्र संस्कार अथवा मिथ्या धारणाके वश ऐसी अनहोनी वातको भी माननेके लिये प्रस्तुत हैं, इतना ही नही, बल्कि अन्यथा प्रतिपादन और गलत प्रचारके द्वारा भोले भाइयोकी आँखोमे धूल झोककर उनसे भी उसे मनवाना चाहते हैं। और इस तरह जाने-अनजाने जैन-तीर्थड्रोकी महती उदारसभाके आदर्शको गिरानेके लिये प्रयत्नशील हैं। इन पण्डितोमे
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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