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________________ गोत्रकर्मपर शास्त्रीजीका उत्तर-लेख ३७१ इन सब अवतरणोसे यह बिल्कुल स्पष्ट है कि आर्यखण्डमे उत्पन्न होनेवाले मनुष्योमें सकलसयमके ग्रहणकी पात्रता होती है। शक, यवन, शबर और पुलिन्दादिक लोग चूंकि आर्यखण्डमे उत्पन्न होते हैं जैसा कि ऊपर सिद्ध किया जा चुका है--इसलिये वे भी सकलसयमके पात्र है—मुनि हो सकते हैं। (३ ) आर्यखण्डकी जो पैमाइश जैनशास्त्रोमे बतलाई है उसके अनुसार आज-कलकी जानी हुई सारी दुनिया उसकी सीमाके भीतर आ जाती है; इसीसे बाबू सूरजभानजीने उसे प्रकट करते हुए अपने लेखमे लिखा था - "भरतक्षेत्रकी चौडाई ५२६ योजन ६ कला है। इसके ठीक मध्यमे ५० योजन चौडा विलयार्ध पर्वत है, जिसे घटाकर दोका भाग देनेसे २३८ योजन ३ कलाका परिमाण आता है, यही आर्यखण्डकी चौडाई बडे योजनोसे है, जिसके ४७६००० से भी अधिक कोस होते है, और यह सख्या आजकलकी जानी हुई सारी पृथ्वीकी पैमाईशसे बहुत ही ज्यादा-कई गुणी अधिक है। भावार्थ इसका यह है कि आज-कलकी जानी हुई सारी पृथ्वी तो जार्यखण्ड जरूर ही है।" इसपर शास्त्रीजीकी भी कोई आपत्ति नही। और समाजके प्रसिद्ध विद्वान् स्वर्गीय प० गोपालदासजी वरैय्याने भी अपनी भूगोलमीमासा पुस्तकमे, आर्यखण्डके भीतर एशिया, योरुप, अमेरिका, एफ्रीका और आष्ट्रेलिया जैसे प्रधान-प्रधान महाद्वीपोको शामिल करके वर्तमानकी जानी हुई सारी दुनियाका आर्यखण्डमे समावेश होना बतलाया है। जब आर्यखण्डमें आजकलकी जानी हुई सारी दुनिया आ जाती है, और आर्यखण्डमें
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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