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________________ गोरकर्मपर मारलीजीका उत्तर-लेस ३६० थे, और इनलिये वे सब म्लेन्छ पहलेगे ही आर्यखण्डमे निवास करते थे, जैसा कि आदिपुराणके निम्न वायोमे प्रक्ट है -- पुलिन्दकन्यकाः सैन्यसमालोकनविम्मिता' । अन्याजसुन्दगकाग दूगटालोफयत्प्रभुः ॥४॥ चमरीवालकान्केचित् केचिकतरिकाण्डकान् । प्रभोरुपायनीकृन्य दशुम्लेंच्छराजका. ॥४२|| तनो विदुरमुल्लंव्य सोऽध्यान सह मेनया । गंगाद्वारमनुप्रापत् स्वमिवालंध्यमर्णनम् ॥४५॥ -आदिपुराण, पर्व २८ इन सब प्रमाणोमे इस विषयमें कोई सन्देह नहीं रहता कि शक-यवन-शवर और पुलिन्दादिक म्लेच्छ आर्यखण्डके ही रहनेवाले हैं, आर्यखण्डोद्भव है---म्लेच्छखण्डोद्भव नहीं है। शास्त्रीजीका उन्हें 'म्लेच्छखण्डोद्भव' लिसना तथा यह प्रतिपादित करना कि 'आर्यखण्डोद्भव कोई म्लेच्छ होते ही नही' तथा 'किमी आचार्यने उन्हे आर्यखण्डमे उत्पन्न होनेवाला लिखा ही नही', गात जान पडता है। साथ ही, यह कहना भी गलत हो जाता है कि 'आर्यखण्डमे उत्पन्न होनेवाले सब आर्य ही होते हैं, म्लेच्छ नहीं'। इसके सिवाय, 'क्षेत्र-आर्य'का जो लक्षण श्रीभट्टाकलक-देवने राजवतिकर्म दिया है उसमें भी यह नहीं बतलाया कि जो आर्यखण्डमे उत्पन्न होते हैं वे सब 'क्षेत्र आर्य' होते है, वरिक "काशी-कोशलादिषु जाताः क्षेत्रार्या " इस वाक्य के द्वारा काशीकौशलादिक जैसे आर्यदेशोमे उत्पन्न होनेवालोको ही क्षेत्र-आर्य' बतलाया है---शक, यवन, तुरुष्क (तुर्किस्तान) जैसे म्लेच्छ देशोमें उत्पन्न होनेवालोको नहीं। और इसलिए शास्त्रीजीका उक्त सब कथन कितना साधार है उसे सहृदय पाठक भव सहज ही में
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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