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________________ अनोखा तर्क और अजीव साहस ३५७ पापोका भी त्यागी नहीं था" इस वाक्य पर आपत्ति करते हुए लेखकजी लिखते है -"गृहस्थ सकल्पी हिंसाका त्यागी हो सकता है। रावणने गृहस्थमे रहते हुए ऐसा कौनसा पापकर्म किया है जिससे वह हिंसादिक पापोका त्यागी नही हो सकता। जरा प्रमाण-सहित लिखिये ।" ____इसके लिये रावणके वे प्रतिज्ञा-समयके विचार-वाक्य ही पर्याप्त है, जो ऊपर न० १ मे उद्धृत किये जा चुके हैं और जिनमे उसने खुद कहा है कि 'मैं गृहस्थके त्यागने योग्य स्थूल हिंसादिक पच पापोमेसे एकका भी त्याग नहीं कर सकता हूँ। मेरा मन मस्त हाथीकी तरह सव पदार्थोमे दौडता है और मैं उसे रोकनेमे समर्थ नही हूँ। इतने पर भी लेखकजी रावणके पीछे पच पापोके त्यागका पुछल्ला लगाना चाहते हैं, यह कितने खेद तथा आश्चर्यकी बात है ।। (५) लेखकजीकी अन्तिम आपत्तिका रूप इस प्रकार है - "रावणको व्यभिचारी सिद्ध करनेसे पूर्व हम यह पूछना चाहते हैं कि इससे आप क्या प्रयोजन सिद्ध करना चाहते हैं। क्योकि व्यभिचारजात और व्यभिचारीमे बहुत अन्तर है। व्यभिचारजात यज्ञोपवीत, महाव्रत तथा मोक्षका अधिकारी नही है और द्विजाति न होनेसे प्रतिमाको छू भी नही सकता। फिर समान-अधिकारका स्वप्न देखना और सदाचारीको भी व्यभिचारी लिखना आपका मिथ्या है या नही ? अच्छा, पहले आगमानुकूल रावणको व्यभिचारी तो सिद्ध कीजिये ।" "और आगमानुकूल रावण व्यभिचारी सिद्ध न हुआ तो जिस प्रकार यह उदाहरण मिथ्या है उसी प्रकार अन्य भी उदाहरण मिथ्या सिद्ध हो जायगे।"
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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