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________________ ३२६ युगवीर-निवन्धावली 'हिन्दी मज्झिमनिकाय' वाले लेखमे जैनधर्मसे बौद्धोके ईर्पाभाव तथा द्वेषभावकी कल्पना की है वह कल्पना 'सामगामसुत्त' के साथ क्यो सगत नहीं बैठती ? क्योकि इस सूत्रमे भी तो निगठनातपुत्त ( महावीर ) के धर्मको दुराख्यात (ठीकसे न कहा गया) दुष्प्रवेदित ( ठीकसे न साक्षात्कार किया गया ), अतैर्थाणिक (पार न लगानेवाला), असम्यक्सम्बुद्ध प्रवेदित और प्रतिष्ठारहित आदि बुरे रूपमे उल्लिखित किया गया है। ६–ब्रक्ष्मचारीजीने अपने उक्त लेखमे 'उपालिसुत' आदि पर आपत्ति करते हुए लिखा है कि :-- "यद्यपि लेखकने कथन ऐसा किया है मानो वे सब वाक्य गौतमबुद्धके ही हैं परन्तु ऐसा सभव नही है, ५०० वर्षों तक वे सब वाक्य वैसेके वैसे ही चले आये हो, सभव है कुछ आए हो, उनमे उस समयके लेखकोने जरूर अपना अभिप्राय प्रवेश किया है, विलकुल शुद्ध कथन नही हो सकता।" . जब 'मज्झिमनिकाय' आदिको लिये हुए पिटक ग्रन्थोकी ऐसी स्थिति ब्रह्मचारीजी स्वय स्वीकार करते हैं, तब निगठनात पुत्तकी सृत्यु तथा सघभेद-समाचारवाली घटनाके विषयमे जो यह युक्तिपुरस्सर कल्पना की है कि वह मक्खलिपुत्त गोशालकी मृत्युसे सम्बन्ध रख सकती है और इस सूत्रमे मक्खलिपुत्त की जगह 'नातपुत्त' का नाम किसी भूल या द्वेषादिका परिणाम हो सकता है, इस पर ब्रह्मचारीजी किस आधार पर आपत्ति करने बैठे हैं, वह कुछ समझमे नही आता ? उसका भी स्पष्टीकरण होना चाहिये। ७-समालोचनाके अन्तिम पैराग्राफमे लिखा है - "गोपमग्गलाक सुत्त न० १०८ से विदित होता है कि
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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