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________________ ३१० युगवीर-निवन्धावली दिया गया है और उसके देनेका जो कारण है उसका स्पष्टीकरण ऊपर किया जा चुका है और उस परसे पाठक उसकी जरुरतको स्वत महसूस कर सकते हैं । हाँ, यदि सम्पादकमै साम्प्रदायिक कट्टरता होती तो जरूरत होने पर भी वह उसे न देता, शायद इसी दृष्टिमे वैरिप्टर साहवने "क्या जरूरत थी" इन शब्दोको लिखा हो। दूसरे यदि सम्पादककी ऐसी मान्यता होती, तो फिर 'मूल' शब्दके मर्यादा-विषयक नोटसे क्या नतीजा था ? तव तो दिगम्बर मतके मूल धर्म होने पर ही आपत्ति की जाती, जैसा कि अन्य नोटोमे भी किसी-किसी विषयपर स्पष्ट आपत्ति की गई है। साथ ही, लेखके उस अश पर भी आपत्ति की जाती जहाँ ( पृ० २८६ ) खारवेलके शिलालेखमे उल्लेखित प्रतिमाको "अवश्य दिगम्बर थी" ऐसा लिखा गया है, क्योकि शिलालेखमे उसके साथ 'दिगम्बर' शब्दका कोई प्रयोग नहीं है। इसके सिवाय, वाबू पूरणचदजी नाहरका वह लेख भी 'अनेकान्त' में छापा जाता जो श्वेताम्बर मतकी प्राचीनता सिद्ध करनेके लिये प्रकट हुआ है। अत आपकी इस युक्तिमे कुछ भी दम मालूम नही होता। रही लेखके न छापनेकी वात, वह जरूर नही छापा गया है। परन्तु उसके न छापनेका कारण यह नही है कि उसमे श्वेताम्बर मतकी अपेक्षा दिगम्बर मतकी प्राचीनता सिद्ध करनेका यत्न किया गया है बल्कि इस लिये नही छापा गया है कि वह गौरवहीन समझा गया, उसका युक्तिवाद प्राय लचर और पोच पाया गया और इससे भी अधिक त्रुटि उसमे यह देखी गई कि वह शिष्टाचारसे गिरा हुआ है, अपने एक भ्रातृवर्गको घृणाकी दृष्टिसे ही नही देखता किन्तु उसके पूज्य पुरुषोंके प्रति ओछे एव
SR No.010793
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages881
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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